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(३०) दिनों में समस्त शत्रुओं को परास्त करके बड़ी विभूति सहित लौट आया । राजा काल संवर ने यह समाचार सुनकर बड़ा उत्सव किया और यह विचार कर कि सबके सामने इसे युवराज पद देदूं, देश देशांतरों के राजाओं को निमंत्रण देकर बुलवाया और समस्त मंडली के समक्ष में कुमार को युवराज पद पर स्थापित कर दिया। कुमार ने इस पदको सहर्ष स्वीकार किया और अपने पिता का बड़ा आभार माना। इस महोत्सव की खुशी में याचकों को मुंह मांगा दान दिया गया। ___ * पंद्रहवां परिच्छेद * Bाय ईर्षा ! तेरा सत्यानाश हो, तेरा मुंह काला हो,
तूने जिस घरमें प्रवेश किया, उसे बरबाद किये 100 बिना न छोड़ा। यहां तो प्रद्युम्न को युवराज पद प्रदान किये जाने से लोगों को अपार हर्ष हो रहा था, किंतु महलों में राजा कालसंवर की अन्य ५०० स्त्रियों में जिन से ५०० पुत्र हुए थे, द्वेषाग्नि प्रज्वलित होरही थी। चन्द्रप्रभा के पुत्र को युवराज पद क्यों मिला, यह उनसे सहन न हुआ। उन्हों ने अपने पुत्रों से क्रोधित होकर कहा, हे शक्तिहीन कुपुत्रो ! तुम हुए जैसे न हुए। तुम्हारे होने से क्या लाभ ? जब तुम्हारे देखते २ जिसकी जाति पांति का कुछ पता नहीं, उस