Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Mulchand Jain

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Page 30
________________ ( २४ ) बढ़ता है । हे तीन खण्ड के स्वामि ! जब आपही शोक करते हैं तो आपकी सारी प्रजा भी विकल हो जायगी । ऐसा जान कर आप शोक को त्यागकर धैर्य धारण कीजिये और इस में संदेह नहीं कि जो बालक यादव कुल में उत्पन्न होता है वह प्रायः सौभाग्यवान और दीर्घ आयु का धारक होता है । हमें विश्वास है कि आपके पुत्र को कोई बैरी हरकर ले गया है । वह जहां गया है वहां ही सुख से तिष्ठा होगा, कुछ दिन बाद अवश्य आप के घर आएगा । इस प्रकार मंत्रियों के समझाने से राजा ने शोक को त्याग दिया और रुक्मणी को समझाने लगे ; तथा यह निश्चय जानकर कि पुत्रको कोई वैरी हरकर लेगया है चारों ओर अनेक तेज़ घुड़सवारों को सेना सहित पुत्र की खोज में रवाना किया। इतने में आकाशमार्ग से नारदजी को आते देखकर श्रीकृष्ण अपने आसन से विनय पूर्वक खड़े होगए और नमस्कार करके उनको अपने आसन पर बैठाया । नारद जी दुःखी होकर मौन से बैठ गए। थोड़ी देर के बाद दुख को दाब कर संक्लेश सहित बोले, कृष्णराज ! निश्चय जानो जो कुछ जिनेन्द्रदेव ने कहा है वह अक्षर २ सत्य है, वही मैं कहता हूं । जितने संसारी जीव हैं उनका एक न एक दिन अवश्य विनाश होता है, यह जान कर शोक करना निष्फल

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