Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Mulchand Jain

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Page 32
________________ ( २६ ) * तेरहवां परिच्छेद * तना कहकर नारदजी चलदिए और सुमेरु पर्वत पर इ पहुँचे । वहां से प्रातः काल संध्या बंदनादि नित्य क्रिया तथा जिन मंदिरों की बंदना करके पुंडरीक पुरी को रवाना हुए जहां धर्मचक्र के प्रवर्तक श्री तीर्थकर देव सदाकाल विराजमान रहते हैं, और ६ खण्ड पृथ्वी के चक्रवर्ती और बल्देव वासुदेवादिक भी सर्वदा विद्यमान रहते हैं । नारदजी ने आकाश से नीचे उतर कर समोसरण में प्रवेश किया और भगवान् की प्रदक्षिणा देकर भांति २ के वचनों से स्तुति करने लगे । तत्पश्चात् जिनेन्द्र के चरण . कमल के पास बैठ गए। उसी समय पद्मनाभि चक्रवर्ती भगवान के सामने बैठा हुआ था, उसने नारद जी को सिंहासन के तले बैठा देखकर आश्चर्य पूर्वक उसे अपनी हथेली पर उठा लिया और जिनेश्वर देव को नमस्कार करके विनय पूर्वक निवेदन किया कि महाराज ! यह जीव किस गति का धारक है, कहां का निवासी है और यहां कैसे आया है ? जिनेश्वर भगवान् ने दिव्यध्वनि द्वारा नारद जी का सारा हाल सुनाया और कहा कि यह श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का पता पूछने के लिए यहां मेरे पास आया है । फिर चक्रवर्ती के प्रश्नानुसार कृष्ण जी का सारा वृत्तांत, दैव का प्रद्युम्न

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