________________
( २५ ) है । आप स्वयं शास्त्रों के ज्ञाता हैं, मैं आपको क्या समझाऊं। कृष्णजी बोले, महाराज! आपका कहना सत्य है, कृपा करके आप रुक्मणी को समझाइये, उसका धैर्य बंधाइये, उसके दुःख को देखकर मेरा हृदय फटा जाता है ।
नारदजी रुक्मणी के पास गए । रुक्मणी उनका श्रादर पूर्वक सन्मान करके उनके चरणों में गिर पड़ी और रोने लगी । नारदजी ने ज्यों त्यों अपना दुख दाब कर कहा, बेटी, खड़ी होजा, शोक मत कर, जिस पुत्र का तीन खण्ड का स्वामी कृष्ण तो पिता, और तेरे जैसी जगद्विख्यात् राता है, किसकी सामर्थ्य है कि उसको मारडाले । ऐसा बालक कदापि अल्पायु नहीं होसकता । निश्चय से, कोई जन्म का वैरी उसे हरकर लेगया है। थोड़े दिन में अवश्य तेरे पास आएगा, तू घबरा मत । मैं सर्वत्र तलाश करके तेरे पुत्र को ले आऊंगा। अढाई द्वीप में ऐसा कोई भी स्थान नहीं, जहां मेरा गमन न हो । मैं समस्त भूमि पर तेरे पुत्र को तलाश करूंगा । तू शोक मतकर और धीरज धारण कर । मैं अभी विदेह क्षेत्र में जाकर श्रीसीमंधर स्वामी से जो अतिशय विभव संयुक्त समवसरण में विराजमान हैं, तेरे पुत्र का सम्पूर्ण चरित्र सुनकर आऊंगा।