Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Mulchand Jain

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Page 25
________________ ( १६ ) अथवा तुझे किसी पर्वत की गुफ़ा में किसी चट्टान के नीचे दबा कर पीस डालूं । इस प्रकार दैत्य ने बेचारे बालक को बड़ी निर्दयता की दृष्टि से देखा और शिला के नीचे दबाने का ही दृढ़ संकल्प करके उसे तक्षक पर्वत पर ले गया। वहां एक. बड़ी भयानक अटवी थी । इसे देख कर मनुष्य की तो क्या बात स्वयं यमराज को भी भय उत्पन्न होता था । यहां एक ५२ हाथ लम्बी, ५० हाथ मोटी मज़बूत चट्टान के नीचे दुष्ट दैत्य ने इस छह दिन के बालक को रखकर अपने दोनों पैरों से चट्टान को खूब दबाया और यह कह कर कि रे दुष्ट ! यह तेरेही कम्मों का फल है, वहां से चल दिया । पर इतना घोर उपसर्ग होते हुए भी वह बालक पूर्वोपार्जित पुन्य के उदय से नहीं मरा और उसका बाल भी बांका न हुआ | सच हैं, पुन्य के उदय से दुख भी सुख रूप हो जाता है । * ग्यारहवां परिच्छेद योग से अगले दिन जब सूर्य का प्रकाश हुआ, मेघकूट नरेश कालसंवर अपनी रानी कनकमाला सहित विमान में बैठे हुए उसी पर्वत पर आ निक ले । चट्टान पर आते ही उनका विमान जो सपाटे से आकाश में जारहा था, एकाएक अटक गया और तिलमात्र sho

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