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महारानी के पुत्ररत्न की उत्पत्ति हुई है, इससे महाराज को और भी खुशी हुई और उन्हों ने हुक्म दिया कि इनको भी खूब इनाम दो । महाराज की आज्ञानुसार खूब दान दिया गया और घर २ में महान उत्सव मनाया गया ।
दशवां परिच्छेद ।
पांच दिन लगातार महल में अनेक महोत्सव हुए, 36 किंतु छठे दिन रात्रि के समय जब रुक्मणी आनंद पूर्वक शयन कर रही थी और सहस्रों मंगल गीत गानेवाली तथा नृत्य करने वाली स्त्रियां और दासियां उसके पास रक्षार्थ सो रही थीं, पापोदय से एक दैत्य जिसकी स्त्री को पहिले जन्म में महाराज के नव उत्पन्न पुत्र प्रद्युम्न ने मोह के वश वा दुर्बुद्धि की प्रेरणा से हर लिया था और जिसके वियोग से वह पागल हुआ गली २ फिरने लगा था, उसी रात्रि को विमान में बैठा आकाश में लीला से विचर रहा था । दैवयोग से उसका विमान रुक्मणी के महल के ऊपर आया और बालक के ऊपर आते ही वह पवन के समान चलनेवाला विमान आप से आप अटक गया । दैत्य विचारने लगा कि किस कारण से विमान रुक गया ? क्या कोई नीचे जिन