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(१२) दीजिए । श्री कृष्ण ने मुस्कराकर रूप्यकुमार को छोड़ दिया
और नातेदारों के समान उसके साथ व्यवहार किया, परंतु रूप्यकुमार लज्जा के कारण कुछ न गेला और नीची गर्दन किये हुए वापिस चला गया । ।
सातवां परिच्छेद * PROSERST
त दनंतर दोनों भाई रुक्मणी सहित आनंद सागर rocesses में निमग्न हुए, अनेक प्रकार के विनोद प्रमोद करते हुए, और भांति भांति के वन उपवन देखते हुए, खैतक पर्वत पर पहुंचे । वहां जाकर बल्देव जी ने श्रीकृष्ण और रुक्मणीका विधिपूर्वक पाणिग्रहण कराया। जब द्वारका नगरी में ये शुभ मंगलीक समाचार पहुंचे, तो समस्त पुर निवासियों को बड़ा आनंदहुवा । उन्हों ने नगरी को तोरणों तथा पताकाओं से शृङ्गारित किया और बड़ी धूम धाम से गाजे बाजे के साथ महाराज को लिवा लाने के लिये रैवतक पर्वत पर गए।
श्री कृष्ण अपनी प्रजा से मिलकर बड़े प्रसन्न हुए और रुक्मणी सहित नगरी में पधारे । नवीन वर वधू को देखने के लिये सब को ऐसी उत्कण्ठा हुई कि एक कौर हाथ में और एक मुँह में लिए ही लोग घरों से दौड़े आने लगे।