________________
( ११ )
रही है । रुक्मणी ने लज्जा को संकोच कर के निवेदन किया, कि प्राणनाथ ! मेरी एक प्रार्थना है और वह यह है कि संग्राम भूमि में आप कृपा कर के मेरे पिता तथा भ्राता को जीवित बचा दीजिए, नहीं तो संसार में मुझे लोक निंदा का दुख सहना पड़ेगा । कृष्ण जी मुस्कराकर बोले, हे कान्ते, तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि तुम्हारे पिता तथा भ्राता को संग्राम में जीवित छोड़ दूंगा । यह उत्तर पाकर रुक्मणी को बड़ी प्रसन्नता हुई और बोली हे नाथ ! आप की इस संग्राम भूमि में जय हो ।
इतने में दोनों ओर से घोर संग्राम होने लगा । इधर तो इतनी बड़ी सेना और इतने सुभट और उधर केवल ये दोनों भाई थे, परंतु ये दोनों रथ से उतर कर इतनी वीरता स लड़े कि इन्हों ने शत्रु की सारी सेना को तितर बितर कर दी । हज़ारों धड़ काट कर पृथ्वी पर गिरा दिए, लाखों को जहां के तहाँ सुला दिए । शिशुपाल को यमलोक पहुँचा दिया और रूप्यकुमार को नागफास वाण द्वारा नख से शिख तक रस्सी के समान जकड़ कर बांध लिया । इस प्रकार युद्ध कर के, तथा मदोन्मत्त शत्रु का नाश कर के ये दोनों भाई रुक्मणी के पास आए । रुक्मणी ने अति नम्रता से प्रार्थना की कि हे नाथ कृपा करके मेरे भाई रूप्यकुमार को नागफास वाण से छोड़