Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Mulchand Jain

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Page 15
________________ उसने अपनी गुप्त रहस्य जाननेवाली भुत्रा से इस कठिनाई का ज़िकर किया । भुत्रा ने उसका साहस बंधाया और उसे अपने साथ लेकर गीत गाती हुई धीरे २ महल से बाहर निकली। रास्ते में शिशुपाल के सिपाहियों ने राजा की आज्ञानुसार उन्हें जाने से रोक दिया, परंतु भुआ ने बड़ी चतुराई से कहला कर भेजा कि रुक्मणी ने एक कामदेव की मूर्ति के समक्ष प्रतिज्ञा कर रखी है कि यदि मेरा विवाह शिशुपाल के साथ होगा, तो मैं लग्न के दिन पूजा करने आऊंगी, इस लिए आज उसका वन में जाना अत्यन्त आवश्यक है। यह सुन कर राजा ने आज्ञा देदी । उद्यान में पहुंच कर रुक्मणी अकेली मूर्ति के पास गई और चारों ओर देखकर पुकार कर कहने लगी कि यदि द्वारकानाथ आए हों तो मुझे दर्शन दें । यह सुनते ही कृष्ण बल्देव सहित सामने आकर खड़े होगए और बोले कि जिसे तुमने याद किया है वह सामने खड़ा है । रु. क्मणी ने लज्जा से सिर नीचा कर लिया और उसका कंधा कम्पित होने लगा । बल्देव का इशारा पाते ही कृष्ण जी ने रुक्मणी को शीघ्र उठा कर रथ में बिठा लिया और सपाटे से रथ को हांक दिया । चलते रथ में कृष्ण जी ने अपना शंख बजाया और भीष्म, उसके पुत्र रूप्यकुमार तथा राजा शिशुपाल और उस

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