Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Mulchand Jain

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Page 13
________________ (७) सुन्दरी तो मैंने कभी नहीं देखी । नारद जी ने उत्तर दिया राजन् ! मैं सर्वत्र घूम आया, परन्तु मेरे देखने में कोई ऐसी सुंदर मनोहर स्त्री नहीं आई। यह महाराज भीष्म की पुत्री, रूपलावण्य की खानि रुक्मणी का चित्र है । संसार में आप का अवतार लेना तभी सार्थक होगा जब रुक्मणी से आपका घर सुशोभित होगा। कृष्णजी ने पूछा, यह बाला विवाहिता है या कुँवारी ? नारदजी ने उत्तर दिया कि राजन् ! कुँवारी है, किंतु इस के भाई ने इसे राजा शिशुपाल को देनी कर रक्खी है, अतएव रुक्मणी के लिए आपको राजा शिशुपाल से युद्ध करना होगा । यह सुनकर कृष्ण जी कुछ उदास हो गए, किंतु नारदजी ने उनका साहस बंधाकर और उनको तरह २ के वाक्यों से मोहित करके अपने स्थान को पयान किया। उनके जाते ही श्रीकृष्ण एकदम मूर्छित होगए, अनेक शीतोपचार करने से सचेत हुए ; परंतु वे रातदिन रुकमणि के प्रेम में ही आसक्त रहने लगे और सब काम काज भूल गए । * पांचवाँ परिच्छेद * PRATEEKड़े दिनों के पश्चात् रुक्मणिको यह जानकर कि जो राजा शिशुपाल ने मेरे साथ विवाह करने के लिए लग्निपत्र शुधवाया है और विवाह की तिथि BREATREE भी नियत करली है, बड़ा खेद हुआ। वह अपनी

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