Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Mulchand Jain

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Page 11
________________ वह भी इसके समान सुंदर होगी । यह सोचकर थोड़ी देर के पश्चात् उन्हों ने अन्तःपुर देखने की इच्छा प्रगट की। राजा ने प्रसन्नता से उत्तर दिया, बहुत अच्छा, आप मेरे महल को पवित्र कीजिये । तब नारद जी महल में गए। राजा की बहिन ने उनका बड़ा सन्मान किया और तमाम रानियों ने उनके चरणों में पड़कर शीश नवाया। नारदजी ने सबको आशीर्वाद दिया। राजकुमारी रुक्मणी भी वहीं खड़ी थी। उसे देखते ही नारदजी ने पूछा, यह बालिका किसकी है ? राजा की बहिन ने उत्तर दिया कि यह महाराज भीष्म की पुत्री है । कुमारी ने मुनि को प्रणाम किया । नारदजी ने उसे ऐसा आशीर्वाद दिया कि "पुत्री तू श्रीकृष्ण की पट्ट. रानी हो"। यह सुनकर रुक्मणी अपनी भुवा की ओर दे लगी। भुवाने पूछा, महाराज! श्रीकृष्ण कौन हैं ? वे कहां रहते हैं ? उनका वृत्तांत कहो । नारदजी बोले, बहिन! कृष्ण जी द्वारका के राजा हैं । वे हरिवंश के शृङ्गार और यादवों के भूषण हैं । अनेक राजा उनके आधीन हैं। वे बड़े धीर वीर और ऐश्वर्यवान हैं और नारायण के नाम से विख्यात हैं। यह सुनकर रुक्मणी को बड़ा आश्चर्य हुआ और अपनी भुवा से कहने लगी कि यह कैसे सम्भव है, पिताजी ने तो मुझे शिशुपाल राजा को देनी कर रक्खी है । भुवा ने उत्तर दिया,

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