Book Title: Pradyumna Charitra
Author(s): Dayachandra Jain
Publisher: Mulchand Jain

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Page 16
________________ (१०) के वीर योद्धाओं को ललकार कर बड़े ज़ोर से कहने लगा कि मैं द्वारकाधिपति कृष्ण, रुक्मणी को लिए जाता हूं, जिस में साहस हो वह आए और अपनी वीरता दिखलाए । यदि शक्ति हो तो रुक्मणी को छुड़ा कर लेजाए, वरन् तुम्हारी शूर वीरता को धिक्कार है । हे रूप्यकुमार ! यदि तुम कुछ सामर्थ रखते हो तो आओ और अपनी बहिन को छुड़ा कर लेजाओ। हे शिशुपाल ! जब मैं रुक्मणी को लिए जाता हूं तब तुम्हारे जीवन से क्या ? हे राजाओ ! तुम मेरे साथ युद्ध किए विना कैसे कृतार्थ हो सक्ते हो । यह कह कर कृष्ण अपने रथ को वन से बाहर निकाल लाए। उनके वचन सुन कर सारी सेना में हलचली मच गई और सब की सब उन की ओर उमंड आई, परन्तु कृष्ण बल्देव दोनों भाइयों ने क्षण मात्र में सारी सेना को रोक लिया। इतनी बड़ी सेना को उनके विरुद्ध देख कर रुक्मणी निराश और चिंतित हो रही थी। कृष्ण जी ने यह देखकर उसे धैर्य दिया और कहने लगे, प्यारी देख तो सही अभी क्षणमात्र में सेना के सुभटों तथा उनके स्वामी राजाओं को यमराज के घर भेजे देता हूं । परंतु उसका शोक बंद नहीं हुआ । वह पूर्ववत् उदास और मलीन चित्त बैठी रही । तब कृष्णजी ने फिर पूछा, हे चन्द्रानने, कह तो सही तू क्यों इतनी दुखी हो

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