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(६) नहीं बेटी तू नारदजी के वचनों का विश्वास कर । पहिले एक मुनि महाराज ने भी यही कहा था। तेरे माता पिता ने तुझे शिशुपाल को देनी नहीं की है, वरन् तेरे भाई ने कह दिया है, सो संसार में माता पिता की ही दी हुई कन्या दूसरे की कही जाती है, तू चिंता मतकर, तू निस्संदेह कृष्ण जी की प्राणवल्लभा होगी, मैं ऐसा ही उपाय रचूंगी। इन शब्दों को सुनकर रुक्मणी मन में फूली नहीं समाई और उसके आनंद का पार न रहा।
तदनंतर, बारम्बार अनेक प्रकार से कृष्णजी की प्रशंसा करके और उन्हें रुक्मणी के हृदय में विराजमान करके, नारद जी वहां से कैलाश पर्वत को रवाना हो गए। वहां जाकर उन्हों ने रुक्मणी के रूप का एक चित्र पट बनाया, और उसे लेकर श्रीकृष्णजी के पास पहुँचे ।
चौथा परिच्छेद * LERGEOG तालाप करते समय नारद जी ने अवसर पाकर वा कृष्णजी को वह चित्रपट दिखलाया। उसे देख
ते ही कृष्णनारायण चकित हो गए। और उस पर ऐसे मोहित हुए कि तन बदन की कुछ सुधि न रही । बहुत देर के बाद नारद जी से पूछा कि स्वामिन् ! यह चित्र किसका है, इसे देखकर मेरा मन कीलित हो गया है। ऐसी