Book Title: Pradyumna Charitra Author(s): Dayachandra Jain Publisher: Mulchand Jain View full book textPage 8
________________ (२) सम्यक्त से विभूषित होने के कारण संसार को केले के स्तंभ के समान निःसार जानते थे और सदैव कर्तव्य पालन में दत्त चित्त रहते थे। * दूसरा परिच्छेद SOMक दिन राज्य विभूति से मण्डित, कृष्ण महाराज ए बंधुवर्गों की एक बड़ी सभा में विराजे, अनेक PE विषयों पर वार्तालाप कर रहे थे । इतने में कोपीन - पहिने, जटा रखाये और हाथ में कुशासन लिये हुए नारद मुनि आकाश मार्ग से गमन करते हुए दिखलाई दिये । उनको आया देखकर सर्व सभा के सज्जन खड़े हो गये और कृष्ण जी ने सन्मान पूर्वक आदर सत्कार करके उनको अपने सिंहासन पर बिठाया और भक्ति भाव से कहने लगे कि हे महाभाग्य मुनि ! यह मेरा बड़ा सौभाग्य है कि आपने अपने चरण कमलों से मेरे घर को पवित्र किया और अपने शुभागमन से मुझे भाग्यशाली बनाया । इस प्रकार उनकी प्रशंसा करके कृष्ण जी दूसरे सिंहासन पर बैठ गये । नारदजी ने उत्तर दिया-राजन् ! जिनेन्द्र बल्देव, नारायणादि पुरुषोत्तम ही दर्शन करने योग्य होते हैं, यदि मैं उनसे भी न मिलूं तो फिर मेरा जन्म ही निष्फल है । इस प्रकार कुछPage Navigation
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