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इन्द्रजीसे किया था, बढानेका अवसर मिला, जिसका मुख्य कारण कविराजजीकी गुण ग्राहकता थी. उक्त कविराजजीकी इच्छानुसार मैंने यह पुस्तक लिखना प्रारम्भ किया था, परन्तु खेदका विषय है, कि इस ग्रन्थके पूर्ण होने के पहले ही उनका परलोकवास होगया.
इस पुस्तकके तय्यार करने में लाला सोहनलालजीने लिपिपत्र लिखकर, जोधपुर निवासी मुनशी देवीप्रसादीने तथा कविराजा मुरारीदानजीके पुत्र गणेशदानजीने .मारवाड़के कितनेएक लेखोंकी छापें भेजकर और सज्जनयन्त्रालयके मैनेजर आशिया चालकदानजीने अपने सुप्रवन्धसे इस पुस्तकको शीघ्र और शुद्ध छपवा कर, जो सहायता दी है, उसके लिये मैं इन महाशयोंको और अन्य मित्रोंको, जिन्होंने इस कार्य में उत्तम सलाह और सहायता दी है, धन्यवाद देता हूं. ऐसेही अंग्रेज़ी, संस्कृत आदि अनेक नन्थ, जिनसे मुझे सहायता मिली है, और जिनके नाम यथास्थान नोदमें लिखे हैं, उनके कर्ताओंका भी मैं आभारी हूं.
विक्टोरियाहॉल, उदयपुर, वि० सं० १९५१ श्रावण शुक्ला ६, ता०७ ऑगस्ट सन् १८९४ .ई.
गौरीशंकर हीराचंद ओझा.
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