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(५८) लेख गुप्त संवत्की पहिली शताब्दीका है. इस पत्रकी लिपि लिपिपत्र पहिलेसे अधिक मिलती है. इ, उ, ण, न, म, स और ह में आधिक परिवर्तन पायाजाता है. व्यंजनों के साथ जुडे हुए स्वरोंके चिन्ह कुछ कुछ वर्तमान चिन्होंसे हैं, और 'औ' का चिन्ह त्रिशूलसा है.
लेखकी अस्ली पंक्तियोंका अक्षरान्तर.
महाराजश्रीगुप्तप्रपौत्रस्य महाराजश्रीघटोत्कचपौत्रस्य महाराजाधिराजश्रीचन्द्रगुप्तपुत्रस्य लिच्छविदौहित्रस्य महादेव्या कुमारदेव्यामुत्फ(त्पन्नस्य महाराजाधिराजश्रीसमुद्रगुप्तस्य सर्वप्टथिवीविजयजनितोदयव्याप्तनिखिलावनितलाकीर्तिमितस्त्रिदशपतिभवनगमनावाप्तलळितमुखविचरणामाचक्षाण इव भुवो बाहुरयमुच्छ्रित : स्तम्भः यस्य । प्रदानभुजविक्क
लिपिपत्र चौधा. यह लिपिपल कुमारगुप्तके समयके मालव संवत् ४९३ और ५२९ के मन्दसोरके लेखकी छापसे तय्यार किया है (१). इसमें 'इ', 'थ', 'ब' आदि कितनेएक अक्षरों में पहिलेसे कुछ फर्क है. 'इ''ई' और 'ए' के चिन्ह, और 'ल' के साथ 'ओ' का चिन्ह पहिलेसे भिन्न प्रकारका है. उपध्मानीयका चिन्हं , और जिह्वामूलीयका इसी लिपिके 'म' अक्षरसा है. अक्षरोंके सिरोंकी लंबाई कुछ कुछ बढ़ी
लेखकी अस्ली पक्तियोंका अक्षरान्तर. ___ वत्सरशतेषु पंचसु विश(विंश)त्यधिकेषु नवसु चाब्देषु । याते वभिरम्यतपस्यमासशुक्ल द्वितीयायां ॥ स्पष्टैरशोकतरुकेतकसिंदुवारलोलातिमुक्तकलतामदयंतिकानां । पुष्पोदमैरभिनवैरधिगम्य नूनमैक्यं विज़ंभितशरे हरपूतदेहे ॥ मधुपानमुदितमधुकरकुलोपगीतनगनैकाथुशाखे । काले नवकुसुगोद्गमदंतुरकांतप्रचुररोड्रे।
लिपिपत्र पांचवा. यह लिपिपत्र मंदसोरसे मिले हुए राजा यशोधर्म (विष्णुवर्द्धन ) के (१) कार्पस दूनिस्क्रप्शनम् इण्डिकेरम् ( जिल्द १, प्लेट १९ ).
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