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नामभिप्रवर्द्धमानकल्याणविजयराज्ये सम्वत्सरशतेषु दशतु षोडशोत्तरकेषु माघमाससितपक्षत्रयोदश्यां शनियुक्तायामेवं सं १०१६ माघशुदि १३ श
लिपिपत्र १९ वा. यह लिपिपत हैहयवंशके राजा जाजल्लदेवके समयके [चदि] संवत ८६६ के लेखकी छापसे (१) तय्यार किया है. इसमें 'इ' और 'ई' अक्षर पहिलेसे भिन्नही प्रकारके हैं. 'व' तथा 'ब' में भेद नहीं है, और बाक़ीके अक्षर देवनागरी जैसे हैं.
लेखकी अस्ली पंक्तियोंका अक्षरान्तर:
तवंश्यो हैहय आसीद्यतो जायन्त हैहयाः। ..........."त्यसेनप्रियासती ॥ ३ ॥ तेषां हैहयभूभुजां समभवद्वंसेशे) स चेदीश्वर : श्रीकोकल्ल इति स्मरप्रतिकृतिचिव(श्च)प्रमोदो यत: । येनायंत्रितसौ(शौर्य .........."मेन मातुयशः स्वीयं प्रषितमुच्चकैः कियदिति व्र(ब्रह्मांडमन्तः क्षिति ॥ ४ ॥ अष्टादशास्य रिपुकुंभिविभंगसिंहाः पु--
लिपिपत २० वा. यह लिपिपत्र चौहाण राजा चाचिगदेवके समयके [विक्रम संवत् १३१९ के लेखकी एक छापसे तय्यार किया है, जो मेरे मित्र जोधपुरनि. वासी मुनशी देवीप्रसादजीने भेजी थी. इसकी लिपि जैनग्रन्थोंकी देवनागरी है, जो बहुधा यति लोग लिखा करते हैं.
लेखकी अस्ली पंक्तियोंका अक्षरान्तर:
आशाराजक्षितिपतनय : श्रीमदालादनाह्वो जज्ञेभूभृद्धवनविदितवाहमानस्य वंशे । श्रीनड्डूलेशिवभवनकर्मसर्वस्ववेत्ता यत्साहाय्य प्रतिपदमहो गूर्जरेशश्च कांक्ष ॥ ३२ ॥ चंचत्केतकचंपकप्रविलसत्तालीत. मालागु(ग)रुस्फूर्जञ्चंदनना
लिपिपत्र २१ वां. यह लिपिपत बंगालके सेनवंशी राजा विजयसेनके समयके लेखकी
(१) एपिग्राफ़िया इण्डिका ( निल्द १, पृष्ठ २४ के पासको नेट)...
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