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(७०) हिस्सा बाई ओर नमा हुआ है, तथा ख, च, छ, ठ, त, ष और स, में थोड़ासा फर्क है. 'उ' का चिन्ह गांठसा बनाया है (देखो छु, नु, पु),
और अनुस्वारका चिन्ह है (देखो लिं, मं, रं, सं). - लेखकी अस्ली पंक्तियोंका अक्षरान्तरः
महरजस्त रजतिरजस्त देवपुत्रस्त कनिष्कस्स संवत्सरे एकदशे सं ११ दइसिकस्त (१) मसस्त दिवसे अठविशे दि २८ अत्र दिवसे भिठुस्स नगदतस्त संवकटिस्स ( ? ) अचय्यदमत्रतशिष्षस्स अचय्यभवप्रशिष्षस्त यठिं अरोपयतो इह दमने विहरस्वमिनि उपसिकस अनंदिअ (२)
लिपिपत्र २७ वां. यह लिपिपत्र सातवाहन ( आंध्रभृत्य ) वंशके राजा पुलुमायिके समयके नासिककी गुफाके लेखकी छापसे (३) तय्यार किया है. उक्त लेखका समय विक्रम संवत्की दूसरी शताब्दीका प्रारम्भ होना चाहिये ( देखो पृष्ट ३२, नोट ४). यह लिपि अशोकके लेखोंकी लिपिसे बनी है, और दक्षिणकी बहुधा समस्त प्राचीन लिपियोंका मूल यही है. इस लिपिपत्रसे लगाकर लिपिपत्र ३९ तक दक्षिणकी ही लिपियें हैं.
लेखकी अस्ली पंक्तियोंका अक्षरान्तरः
सिद्ध(ई) रो वासिठिपुतस सिरिपुळुमायिस संवछरे एकुनवीसे १९ गिम्हानपखे बितीये २ दिवसे तेरसे १३ राजरो गोतमीपुतस हिमवतमेरुमदरपवतसमसारस असिकसुसकमुळकसुरठकुकुरापरातअनुपविदभआकरावतिराजस विझछव (४)
(१) “दइसिक" (Dusius ) मकदूनियाके नवमें महीने का नाम है, (२) महाराजस्य राजातिराजस्य देवपुत्रस्य कनिष्कस्य संवत्सरे एकादशे स ११ दइसिकस्य मासस्य दिवसे अष्टाविंशे दि २८ अस्मिन्दिवसे भिक्षोर्नागदत्तस्य सांख्यकृतिन : (?) भाचाय्य दामत्रातशिष्यस्य आचार्यभवप्रशिष्यस्य अस्थि आरोपयत इह दमने विहारखामिन्या उपासि. काया आनन्याः --
(३) आर्कि यालाजिकल सर्वे आफ वेस्न इण्डिया ( जिल्द ४, प्लेट ५२, नम्बर १८), (४.) सिद्धं राज्ञो वासिष्ठीपुत्रस्य श्रीपुजुमायः संवत्सरे एकोनविंशे १८ प्रमाणां पते दितीये २ दिवसे योदरी १३ राबरालस्य गौतमीपुत्रस्य हिमवन्मेसमन्दरपर्वतसमसारस्थ असिकसुशकमुळ सुराष्ट्रकुकुरापरान्तानूप विदर्भाकरावन्तिराजस्य विन्ध्यव
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