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(७४) त[:] कलिङ्गा(ङ्गोनगरधिवासकात्]ि महेन्द्राचलामलशिखरप्रतिष्ठितस्य सचराचरगुरोः] सकलभुवननिर्माणैकसूत्रधारस्य शशाङ्कचूडामणि(णे)भगवतोगोकर्णस्वा
लिपिपत ३५ वां. यह लिपिपल गंगा वंशके राजा अरिवर्माके दानपत्रकी छापसे (१) तय्यार किया है. इस दानपत्रमें शक संवत् १६९ लिखा है, परन्तु अक्षरोंकी आकृतिपरसे इसकी लिपि शक संवतकी नवी शातब्दीसे पहिलेकी प्रतीत नहीं होती, इसलिये यह दानपत्र पीछेसे जाली बनाया हुआ होना चाहिये. इसमें 'अ, आ, ल और श्री' अक्षर भिन्नही प्रकारसे लिखे हैं.
दानपत्रकी अस्ली पंक्तियों का अक्षरान्तर:
स्वस्त(स्ति) जितम्भगवता गता(त)धनगगनाभेन पद्मनाभेन श्रीमद्जा(जा)न्हवे(वी)यकुल(ला)मलव्योमावभासनभासुरभास्कर[:] स्वखड़े(डै)कप्रह(हा)रखण्डितमहाशिळा(ला)स्तम्भलब्धबळ(ल)पराक्रमो दारणो(रुणा)रिगणविदारणोपलब्धव्रणविभूषणविभूषित[:] का(क)ण्वायनसगोत्रस्य श्रीमा
लिपिपत ३६ वा. यह लिपिपत्र पल्लव वंशके राजा नन्दिवर्माके दानपत्रकी छापसे (२) सय्यार किया है. इसमें कोई प्रचलित संवत् नहीं दिया, किन्तु अक्षरोंकी आकृतिपरसे शक संवत्की नवमी शताब्दीके आस पासकी लिपि पाई जाती है. इस लिपिको "प्राचीन ग्रन्थ लिपि" कहते हैं, जिसमें प्राचीन तामिळ लिपिका कुछ मिश्रण है. बहुतसे अक्षर पहिलेसे भिन्न प्रकारके है, और अनुस्वारका बिन्दु अक्षरके आगे रक्खा है.
दानपत्रकी अस्ली पंक्तियोंका अक्षरान्तर:
श्री स्वस्ति सुमेरुगिरि]मूर्द्धनि प्रवरयोगबद्धासनं जगत्र(त्त्र)यविभूतये रविशशांकनेत्रद्वयमुमासहितमादरादुदयचन्द्रलत्ष्मी(क्ष्मी)प्रवम् सदा
(१) इण्डियन एण्टिक्वेरी (जिरुद ८, पृष्ठ २१२ के पासको प्लेट ). (१) इण्डियन एण्टिकरी (जिल्द ८, पृष्ठ २७४ के पासको प्लेट)..
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