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लिपिपत्र २८ वां. यह लिपिपल पल्लववंशके राजा विष्णुगोपवर्माके दानपत्रकी छापसे (१) तय्यार किया है. उक्त दानपत्र में कोई प्रचलित संवत् नहीं दिया, परन्तु अक्षरोंकी आकृतिपरसे विक्रम संवत्की ४ थी या ५ वीं शताब्दीकी लिपि प्रतीत होती है. इसको लिपिपत्र २७ वें से मिलाकर देखनेसे प्रत्येक अक्षरमें थोड़ा बहुत परिवर्तन पाया जाता है. अक्षरों के सिर छोटे छोटे चौखूटे बनाये हैं. 'औ, ख, घ, ङ, ठ, फ और ज्ञ' अक्षर जो इसमें नहीं मिले, वे पल्लवोंकेही अन्य दानपत्रोंसे छांटकर रक्खे हैं.
दानपत्रकी अस्ली पंक्तियोंका अक्षरान्तर:
जितं भगवता श्रीविजयपलक्कदस्थानात् परमब्रह्मण्यस्य स्वबाहुबलार्जितोर्जितक्षात्रतपोनिधेः विहितसर्चम-दस्य स्थितिस्थितस्यामितात्मनो महाराजस्य श्रीस्कन्दवर्मण : प्रपौत्रस्यार्चितशक्तिसिद्विसम्पन्नस्य प्रतापोपनतराजमण्डलस्य महाराजस्य वसुधातलैकवीरस्य श्रीवीरवर्म
लिपिपत्र २९ वां. यह लिपिपत्र जान्हवी (गंगा) वंशके राजा कोङ्गणी दूसरे के [शक] संवत् ३८८ के दानपत्रकी छापसे (२) तय्यार किया है. इस दान पत्रके संवत्को कितनेएक विद्वान शक मंवत् अनुमान करते हैं, परन्तु अक्षरों की आकृतिपरसे विक्रम संवत्की ९ वीं शताब्दीके पास पासकी लिपि प्रतीत होती है, इसलिये यदि इस दानपत्रका संवत् गांगेय संवत् हो तो आश्चर्य नहीं. इसकी लिपि लिपिपत्र २७ और २८ से बहुत भिन्न, और ३१ वें से मिलती हुई है. दानपत्रकी अस्ली पंक्तियोंका अक्षरान्तरः
ई स्वस्ति जितम्भगवता गतघनगगनाभेन पद्मनाभेन श्रीमद्जा(जान्हवीय - लामला(ल)व्योमावभ(भा)सनभाश्क(स्क)र : स्वखड्क(डैक)प्रह(हा)रखण्डितमहाशिलास्तम्भलब्धबलपराक्रमो दारणो(रुणा)रिगणविदारणोएलब्धव्रणविभूषणविभूषित[:] कण्वायनसगोत्रस्य श्रीमान्कोडाणिमहाधिराज[ः ॥
(१) इण्डियन एण्टिक्करी (जिल्द ५, पृष्ठ ५०-५३ के बीचको प्लेट'). (२) कुर्ग इन्स्क्रिप्शन्स ( पृष्ठ ४ के पासको प्लेट ).
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