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मतिभिः
(५७)
छापसे (२) तय्यार किया है. उक्त लेखसे पायाजाता है, कि रुद्रदामा के समय [शक] संवत् ७२ मृगशिर कृष्णा १ को महावृष्टि से सुदर्शन तालाबका बन्द टूट गया, जिसको पीछा बनवाकर रुद्रदामाने यह लेख खुदवाया था. रुद्रदामा का देहान्त शक संवत् ९० के आस पास हुआ था, जिससे इस लेखका समय शक संवत्की पहिली शताब्दी ठहरता है. इसमें अ, क, ख, ग, घ, च, ड, त, द, ब, भ, म, य, र, ल, व और ह आदिमें, तथा व्यंजनके साथ जुडे हुए स्वरोंके चिन्हों में कितनाक परिवर्तन हुआ है, जिसका कारण कुछ तो समयका अंतर, और कुछ भिन्न भिन्न वंश के राजाओं के यहांकी लेखन शैलीकी भिन्नता है. इस समय अक्षरोंके सिर बांधने लग गये थे, परन्तु सिरमें लंबाई नहीं थी. विसर्ग के दो बिन्दु अक्षरके आगे लगाये हैं, और हलंत व्यंजन पंक्ति से कुछ नीचे लिखा है. 'नौ' और 'मौ' में 'औ' का चिन्ह भिन्न ही प्रकारका है. लेखकी अस्ली पंक्तियोंका अक्षरान्तर:
परम लक्षण व्यजनैरुपेतकान्तमूर्त्तिना स्वयमधिगत महाक्षत्रपनाम्नां नरेद्रकन्यास्वयंवरानेकमात्यप्राप्तदाम्ना महाक्षत्रपेण रुद्रदाम्ना वर्षसहत्राय गोब्राह्म थे धर्मकीर्त्तिवृद्धयर्थं च अपीडयित्वा करविष्टिप्रणय क्रियाभिः पौरजानपदं जनं स्वस्मात्कोशा [[ ] महता धनौघेन अनतिमहता च कालेन त्रिगुणदृढतरविस्तारायामं सेतुं विधाय नग "सुदर्शनतरं कारितमिति स्मिन्नर्थे महाक्षत्रपस्य मतिसचिवकर्मसचिवैरमात्यगुणसमुद्युक्तेर प्यति महत्वा द्वेदस्य (स्या) नुल्लाह विमुख
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लिपिपत तीसरा.
यह लिपिपत्र इलाहाबादके किलेके भीतर के स्तंभपर अशोक के लेखके पास खुदे हुए गुप्तवंशके राजा समुद्रगुप्तके लेखकी छापसे ( २ ) तय्यार किया है. उक्त लेख समुद्रगुप्तके मृत्युके बाद उसके पुत्र चन्द्रगुप्त दूसरेके समय में खुदा था.
चन्द्रगुप्त दूसरेका राज्य गुप्त संवत् ९५ तक रहा था, जिससे यह
( १ ) किया लाजिकल सर्वे आफ वेस्टर्न इण्डिया रिपोर्ट ग्राम एण्टिक्विटीज़ आफ काठियावाड़ एण्ड कच्छ ( प्ल ेट १४ ).
(२) कार्पस इन्स्क्रिप्शनम् इण्डिकेरम् ( जिल्द ३, प्लेट १ ),
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