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(५५) लिपिपत्रोंका संक्षिप्त वृत्तान्त.
लिपिपत्र पहिला. यह लिपिपत्र गिरनार पर्वतपर खुदे हुए मौर्यवंशी राजा अशोकके लेखकी छाप (१) से तय्यार किया है. भारतवर्षमें अशोकसे पहिलेका कोई लेख अबतक नहीं मिला, इसलिये अशोकके लेखोंकी लिपिको उपलब्ध लिपियों में सबसे प्राचीन कहना चाहिये (इस लिपिके समयके लिये देखो प्रष्ठ २). अशोकके समस्त पाली लेखोंकी लिपि करीब करीब इस लिपिसी है, जिसका कारण यह है, कि ये सब लेख अशोककी राजकीय लिपिमें लिखे गये हैं, क्योंकि इसी समयके पास पासके भाघिप्रोलके स्तृपसे मिले हुए लेखों (२), और नाना घाट आदिके लेखोंकी लिपि और इस लिपिमें बहुत कुछ अन्तर है.
इसलिपिमें 'आ' का चिन्ह एक छोटीसी आडी लकीर-है, जो व्यंजनकी दाहिनी ओरको लगाई जाती है ( देखो खा, जा, मा, रा, आदि ). 'इ' का चिन्ह | समकोणसा है (कभी कभी समकोणके स्थानपर गोलाई भी करदेते हैं ), जो व्यंजनके सिरपर दाहिनी ओर को लगता है (देखो खि, टि, मि, नि आदि). 'ई' का चिन्ह ।। है, जो 'इ' के चिन्ह के समान लगता है (देखो पी, मी). 'उ' और 'क' के चिन्ह क्रमसे एक- और दो- आडी या खडी लकीरें हैं, जो व्यंजनके नीचेको लगाई जाती हैं. जिन व्यंजनोंका नीचेका हिस्सा गोल या आडी लकीर वाला होता है, उनके साथ खडी, और जिनका खडी लकीरवाला होता है, उनके साथ आडी लगाई जाती हैं (देखो तु, नु, कू, जू,). 'ए' और 'ऐ' के चिन्ह क्रमसे एक-और दो-आडी लकीरें हैं, जो व्यंजनकी बाई ओर ऊपरकी तरफ़ लगाई जाती हैं (देखो दे, थै ). 'ओ' का चिन्ह दो आडी लकीरें--हैं, जिनमें से एक व्यंजनकी दाहिनी ओरको, और दूसरी बाई ओरके सिरपर या बीचमें कभी कभी समान रेखामें, और कभी कभी ऊंचे नीचे भी लगाई जाती हैं (देखो गो, मो, नो). 'औ' का चिन्ह इस लेख में नहीं है, किन्तु उसमें 'ओ' के चिन्हसे इतनी विशेषता है, कि बाईं ओरको दो
(१) डाक्टर बजे सकी छाप-पार्कि यालाजिकल सर्वे आफ वेसन इण्डियाको रिपोर्ट आन एण्टिक्विटोज माफ काठियावाड एण्ड कच्छ (प्लेट १०-१४), (२) एपिग्राफिया इण्डिका (जिल्द २, पृष्ठ ३२३-२८),
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