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(५९)
समय मालव ( विक्रम ) संवत् ५८९ के लेखकी छापसे ( १ ) तय्यार किया है. इसमें अ, आ, औ, ण, भ और स की आकृतिमें विशेष फ़र्क है. स्वरोंके चिन्ह वर्तमान स्वरचिन्हों से मिलते जुलते हैं. हलंत व्यंजन पंक्ति से कुछ नीचे लिखा है, और उसका सिर उससे अलग रखा है (देखो न् म् ). इस लिपिका 'ओ' लिपिपत १६ के ' ओ' जैसा होना चाहिये.
लेखकी अस्ली पंक्तियोंका अक्षरान्तर:
षष्ट्या सहस्रैः सगरात्मजानां खातः खतुल्यां रुचमादधानः अस्योदपानाधिपतेश्वराय यशान्तिपायात्पयसां विधाता ॥ अथ जयति जनेन्द्रः श्री शोधर्मनामा प्रमदवनमिवान्त: शल्ल (त्लु ) सैन्यं विगाह्य व्रणकिसलयभङ्गैय्यङ्गभूषां विधत्ते तरुणतरुलतावद्वीर कार्त्तिर्विनाम्य ॥
लिपिपल छठा.
यह लिपिपत्र वाकाटक राजा प्रवरसेन दूसरे के दानपत्रकी छापसे (२) तय्यार किया है. इसमें संवत् नहीं दिया, किन्तु अक्षरोंके ढंग से पांचवीं या छठी शताब्दीकी लिपि प्रतीत होती है ( ३ ) इसमें हरएक अक्षरका सिर चतुरस्र बनाया है. इसके अक्षर और स्वरोंके चिन्ह लिपिपत चौथे अक्षर व चिन्हों से अधिक मिलते हैं.
लेखकी अस्ली पंक्तियोंका अक्षरान्तरः
दृष्टम् सिद्धम् ॥ अग्निष्टोमाप्तोर्य्यामोक्त्थ्य षोडश्यातिरात्रवाजये (पे) बृहस्पति सवसाद्यस्क्रचतुरश्वमेधयाजिन: विष्णुवृद्धसगोत्रस्य समूट् (म्राडू)वाकाटकानाम्महाराज श्रीप्रवरसेनस्य सूनो : सूनो : अत्यन्तस्वामिमहाभैरवभक्तस्यं अन्सभारसन्निव (वे) शित शिवलिंगो दहन शिव सुपरितुष्टसमुत्पादितराजवन्शानाम् पराक्रमाधिगतभागीरत्थ्या [स्थ्य ] मलजलमूर्द्धाभिषिक्तानाम् दशाश्वमेधावभृथस्नातानाम्भारशिवानाम्महा
(१) कार्पस इन्स्क्रिप्सनम् इण्डिकेरम् ( जिल्द ३, प्लेट २२ ).
(२) कार्य स इन्स्क्रिप्शनम् इण्डिकेरम् ( जिल्द ३, प्लेट ३५ ).
(३) इस दानपत्र में प्रवरसेन दूसरेको माता प्रभावतीगुप्ताको देवगुप्तकी पुत्री लिखा है. यदि देववर्नाfरक लेखमें आदित्य सेन देवके बाद देवगुप्तका नाम ठीक ठीक पढ़ाजाता हो, और वही प्रभावतीताका पिताहो, तो इस दानपत्रका समय विक्रम संवत्को आठवीं शताब्दी
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