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जेनरल कनिंगहाम (१) लिखते हैं, कि पाली लिपि भारतवर्षके लोगोंकी निर्माण कीहुई एक स्वतन्त्र लिपि है.
इसी तरहका अभिप्राय प्रोफेसर क्रिश्चियन लैसन (२), प्रोफेसर जॉन डाउसन (३), और प्रोफेसर गोल्डस्ट्रकरका भी है.
“ गांधार" लिपि. राजा अशोकके समय गांधार देशमें पालीसे सर्वथा भिन्न प्रकारकी एक लिपि प्रचलित थी, जो उक्त देशके नामसे “गांधार" (४)लिपि कहलाती है. राजा अशोककी शहबाजगिरि और मान्सेराकी धर्माज्ञा, तुरुष्क (५) वंशी राजा कनिष्क और हुविष्कके लेख, और कितनेएक छोटे छोटे अन्य लेख भी इस लिपिमें पाये गये हैं. इस लिपिका एक ताम्रपत्र बहावलपुरसे ४० मील दक्षिण एक स्तूप (६) में से मिला है, जिसके चारों किनारोंपर राजा कनिष्कके ११ वें वर्षका ४ पंक्तिका लेख है. इन लेखोंके अतिरिक्त बाक्ट्रियासे (७) नासिक तक देशी और विदेशी राजाओंके बहुतसे ऐसे सिक्के भी मिले हैं, जिनमेंसे किसीपर एक तरफ ग्रीक और दूसरी ओर गांधार लिपिके, किसीपर गांधार और पालीके,
और किसीपर दोनों ओर गांधार लिपिके अक्षर हैं. पंजाबसे पूर्वमें इस लिपिका कोई लेख नहीं पाया गया, परन्तु उस तरफ बहुतसे सिक्के मिले हैं, जिनपर गांधार और ग्रीक लिपिके अक्षर हैं. वे सिके बाट्रियाकी तरफ़से आये हुए ग्रीक (यूनानी) और क्षत्रप (८) वगैरह विदेशी राजाओंके हैं. (१) कार्पस इन्स्क्रिप्शनम् इंडिकेरम् ( जिल्द १, पृष्ठ ५२), (२) Indische Alterthumskunde 2nd Edition i. p. 1006 (1867). (8) रायल एशियाटिक सोसाइटीका जर्नल, (जिल्द १३, पृष्ठ १.२, सन् १८८१ ई० ).
(४) " ललित विस्तर" के १० वे अध्यायमें ६४ लिपियों में दूसरी "खरोष्टी"(खरोष्ट्री) लिपि लिखी है, वह यही लिपि है. इसको “ बाट्रियन,” " बाट्रियन पालो " "पारियन पाली”, “ नार्थ ( उत्तरी) अशोक ” और “ काबुलिअन” लिपि भी कहते हैं.
(५) कनिष्क और छुविष्कको कल्हण पडितने तुरुष्क (तुर्क) लिख हैं. (राजतरङ्गिणी तरङ्ग १, श्लोक १७०).
(६) एप्रियाटिक सोसाइटी बंगालका नर्नल (जिल्द ३९, हिसह १, पृष्ट ६५-७०, प्लेट२).
(७) हिन्दूकुश पर्वत पोर आक्सस नदी बीचके दपाका नाम " बाकट्रिया" था. (८) क्षत्रप (सत्रप) वंभके राजाओंने ईरानको पोरसे आकर इस देशमें अपना राज्य अमाया था. क्षत्रपोंको दो भाखाओंका होना पाया जाता है, जिनमें एक तो चरी
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