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(४८) कुछ नीचेको झुकी एक छोटीसी लकीर लगादी जाती थी. ३०० के लिये १०० के चिन्ह के साथ ऐसीही दो लकीरें लगाते थे . ४०० से ९०० तकके लिये १०० का चिन्ह लिख उसके साथ क्रम पूर्वक ४ से ९ तकके अंक एक छोटीसी लकीरसे जोडदेते थे. १०१ से १९९ के बीचके अंकोंके लिये यह नियम था, किं १०० का अंक लिख उसके आगे दहाई और एकाईके अंक लिखे जाते थे, जैसे कि १८९ के लिये पहिले १०० का अंक लिख उसके आगे ८० और ९, और ऐसेही ३८६ के लिये ३००, ८०, और ६ लिखते थे. ऐसे अंकोंमें दहाईका कोई अंक न हो, तो सैंकडाके अंकके साथ एकाईका अंक लिखते थे, जैसे कि १०१ लिखने हो तो १०० के साथ १ का अंक लिखा जाता था. (देखो लिपिपत्र ४३ वां).
२००० के लिये १००० के चिन्ह की दाहिनी ओर उपरको छोटीसी एक सिधी लकीर , और ३००० के लिये ऐसीही दो लकीरें लगाते थे 5. ४००० से ९००० तक, और १००००, २००००, ३००००, ४००००, ५००००, ६००००,७००००, ८०००० व ९०००० के लिये १००० के चिन्हके आगे क्रमसे ४ से ९ तकके, और १०, २०, ३०, ४०, ५०, ६०, ७०, ८० व ९० के चिन्ह छोटोसी लकीरसे जोड देते थे (देखो लिपिपत ४३ थां).
११००० के वास्ते १०००० लिख पासही १००० लिखते थे. ऐसेही २१००० के लिये २०००० और १०००, २४००० के लिये २०००० और ४०००,
और ९९००० के लिये ९०००० व ९००० लिखते थे. इसी प्रकार ११५८२ के वास्ते १००००, १०००, ५००, ८० व २; और ९९९९९ के लिये ९००००, ९०००,९००, ९० और ९ लिखते थे.
प्राचीन अंकोंके देखनेसे प्रतीत होता है, कि उनमेंसे बहुतसे वास्तवमें अक्षर हैं, जिनमें भी समयके साथ अक्षरोंकी नांई फर्क पड़ता गया है. १, २, और ३ के लिये तो क्रमसे -, = और = आडी लकीरें हैं. ६ का अंक 'फ'; ७ का 'न'; २० का 'थ'; ३० का 'ल'; ४० का 'प्स'; १०० का 'सु', 'शु' या 'श'; २०० का 'शू' या 'सू'; और १००० का 'नौ' तथा 'ध्र' अक्षर होना स्पष्टही पाया जाता है. पाकीमें से ४ का अंक "xक" (जिह्वामूलीय और 'क' ), ५ का 'तु', ८ का'', ९ का 'ओ' (जैसा कि 'ई' में लिखा जाता है), और १० का अंक 'ळ' अक्षरसे मिलता जुलता है. ८० और ९० के अंक उपध्मानीय और जिह्वामूलीयके चिन्हसे हैं. नेपालके लेखोंमें, कन्नोजके राजा महेन्द्रपाल और विनायकपालके दानपत्रोंमें, तथा महानामनुके बुद्धगयाके लेखमें अंकोंके
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