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(४७) प्राचीन अङ्क.
प्राचीन लेख और दानपत्र आदिके अंकोंके देखनेसे ज्ञात होता है, कि प्राचीन और अर्वाचीन लिपियोंकी तरह अंकोंमें भी अन्तर है. यह अन्तर केवल उनकी आकृतिमें ही नहीं, किन्तु लिखनेकी रीतिमें भी पाया जाता है. वर्तमान समयमें १ से ९ तक अंक, और शून्यसे अंकविद्याका सम्पूर्ण व्यवहार चलता है, और हरएक अंक एकाई, दहाई, सैंकड़ा, हजार, लाख आदिके स्थानोंमें आसक्ता है. स्थानके अनुसार एक ही अंकसे भिन्न भिन्न संख्या प्रकट होती हैं, जैसे ११११११ में छओं एकके ही अंक हैं, परन्तु पहिलेसे १०००००, दूसरेसे १००००, तीसरेसे १०००, चौथेसे १००, पांचवेसे १०, और छठेसे १ समझा जाता है; और खाली स्थान बतलाने के लिये शून्य लिखते हैं. लेखों के सम्बन्ध में इसको नवीन क्रम कहना चाहिये, क्योंकि प्राचीन क्रम इससे भिन्न था.
प्राचीन क्रममें शून्यका व्यवहार नहीं था, और न एकही अंक एकाई, दहाई, सैंकड़ा आदि भिन्न भिन्न स्थानोंपर आसक्ता था, क्योंकि उक्त क्रममें भिन्न भिन्न स्थानों के लिये भिन्न भिन्न चिन्ह थे, अर्थात् १ से ९ सकके ९ चिन्ह, और १०, २०, ३०, ४०, ५०, ६०, ७०, ८०, ९०, १०० व १००० इनमेंसे प्रत्येकदो लिये भी एक एक चिन्ह नियत था. इस प्रकार ९ एकाईके, ९ दहाईके, १ सौ का, और १ हजारका मिल कुल २० चिन्ह या अंक थे, जिनसे ९९९९९ तककी संख्या लिखी जासक्ती थी. लाख, करोड़, अरब आदिके लिये कैसे चिन्ह थे, उनका पता आज तक नहीं लगा, क्योंकि किसी लेख, दानपत्र आदिमें लाख या उससे आगेका कोई चिन्ह नहीं मिला है.
इन अंकोंके लिखनेका क्रम १ से ९ तक तो ऐसाही था, जैसा कि आज है. १० के लिये १ और • नहीं, किन्तु १० का नियत चिन्ह मान लिखा जाता था; ऐसेही २०, ३०, ४०, ५०, ६०,७०, ८०, ९०, १०० और १००० के लिये भी अपना अपना चिन्ह मान लिखा जाता था ( देखो लिपिपत्र ४१, ४२, ४३ ). ११ से ९९ तकके लिखने का क्रम ऐसा था, कि पहिले दहाई का अंक लिख, उसके आगे एकाईका अंक रक्खा जाता था, जैसे कि १५ के लिये पहिले १० का चिन्ह लिख उसके आगे ५, ऐसेही ३५ के लिये ३० और ५, ६२ के लिये ६० और २ आदि.
२०० के लिये १०० का चिन्ह लिख उसकी दाहिनी ओर
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