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- (५२) १५%तिथि, घस्र, दिन आदि. १६% नृप, भूप, भूपति, अष्टि आदि. १७= अत्यष्टि. १८%धृति. १९% अतिधृति.
२० = नख, कृति. २१% उत्कृति, प्रकृति. २२= कृती. २३% विकृति. २४ =जिन, अर्हत, सिद्ध आदि. २५= तत्व २७% नक्षत्र, उडु, भ आदि. ३२= दंत, रद आदि. ३३% देव, अमर, विदश, सुर आदि. ४९% तान.
इन शब्दोंसे संख्या लिखनेका क्रम ऐसा है, कि पहिले शब्दसे एकाई, दूसरेसे दहाई, तीसरेसे सैंकड़ा, चौथेसे हज़ार आदि ( अंकानां वामतो गातः), जैसे कि संवत् २९३ के लिये " अब्दे....."यनिग्रहव्यकिते" लिखा है. (देखो पृष्ट ४२, नोट ३).
___ इस प्रकार शब्दोंसे संख्या लिखनेका प्रचार पहिले पहिल ज्योतिषके पुस्तकोंमें हुआ. ग्रन्थकर्ता अपने ग्रन्थकी रचनाका समय, और लेख आदि के संवत् भी कभी कभी इसी शैलीसे लिखते थे, परन्तु सामान्य व्यवहारमें यह रीति प्रचलित नहीं थी.
प्रत्येक अंकके लिये एक एक शब्द लिखनेसे शब्दों की संख्या पदजानेके कारण प्रत्येक अंकके लिये एक एक अक्षर नियतकर एक शब्दसे दो, तीन या अधिक अंक प्रकट होसके ऐसा 'कटपयादि' नामका एक क्रम भी बनाया गया, जिसमें ९ तक अंक और शून्य के लिये निम्नलिखित अक्षर नियत है:
४
|
|
4
घ
5
|
|
|ठ |
ढ
ण
त
थ
द
ध | न
इस क्रममें भी उपरोक्त शब्द क्रमकी नाई पहिले अक्षरसे एकाई, दूसरेसे दहाई, तीसरेसे सैंकड़ा आदि प्रकट होता है. व्यंजनके साथ जुडा हुआ
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