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६३, ४, ४ और
सु, आ, लू और घू. और स्ता.
(४९)
स्थानपर उस समयकी प्रचलित लिपिके अक्षर लिखे हैं (१ ). पण्डित भगवानलाल इन्द्रजीने नेपालमें कितनेएक ताड़पत्र और कागज़ पर लिखे - हुए ग्रन्थोंके पत्रोंपर एक किनारे अंक, और दूसरे किनारेपर उन्हीं अंकों को बतलानेवाले अक्षर लिखे हुए पाये, जो बहुधा प्राचीन अंकोंके चिन्हों से मिलते हुए हैं. इसी प्रकार अंक और अक्षर दोनों लिखे हुए ताडपत्रके बहुत से जैन पुस्तक खंभातमें शांतिनाथ के भंडारमें तथा अन्य अन्य स्थानों में भी हैं.
भिन्न भिन्न पुस्तकों में अंकोंके लिये नीचे अनुसार अक्षर व चिन्ह पाये गये हैं:
१ = ए, स्व और उ. म: ४ = एक, पर्क, कर्क, और र्ट. ६ = फ्रु, र्फ, फु, फु, ८ = ह्र, ई, ह्रा और द्र. १० = र्ल, ल, अ और सी.
३० =ल, डा और लां. ४० = त, से, प्ता और म. और णू. ६० = धु, धुं, धुं,
धू, घे, घु, घु, चु, बु और बु. थू, चू और र्त. ८० = ७, W, O, O, Q और पु.
१०० = सु, सू, अ और लु. ३०० =स्ता, सा, सु, सुं और सू.
२ = द्वि, स्ति और न. क, क, पु, के और फ्रं. पु, व्या, भ्र और कृ. ९ = ओं, र्ड, र्ड, २० = थ, था, र्थ, र्था,
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३ = त्रि, श्री और ५ = ट, र्त, र्ट, ह ७ = ग्र, मा और ग्र. जं, उं, अ और र्नु. घ, र्घ, प्व, व और ई. ५० = 6, 6, ६, ji ७०= घू, थू,
९० = 88,
= सू, सू, ४०० = स्तो
२००
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१, २ और ३ के लिये क्रमसे ए, द्वि, त्रिः स्व, स्ति, श्री और र्ड, न, मः, लिखते हैं, जो प्राचीन क्रमसे नहीं है. ए, द्वि और त्रि तो उन्हीं अंकवाची शब्दोंके पहिले अक्षर हैं, परंतु स्व, स्ति, श्री; और र्डे, न, मः, ये नवीन कल्पित है. एक ही अंक के लिये भिन्न भिन्न अक्षरोंके होनेका कारण ऐसा पाया जाता है, कि कुछ तो प्राचीन अक्षरोंके पढ़ने में, और कुछ पुस्तकोंकी नकुल करनेमें लेखकोंने गलती की है, जैसे कि १०० का चिन्ह 'सु', प्राचीन लिपिमें ' अ ' से बहुत कुछ मिलता हुआ है, जिसको गलती से ' अ ' लिखने लगगये. नैपालके लेखों में १०० का चिन्ह
(१) इण्डियम एष्टिको रौ ( जिल्द २, पृष्ठ १६३ - १८२ ) सेसिल बेण्यास जर्नी इन नेपाल एण्ड नार्धन इण्डिया ( पृष्ठ ७२-८१ ) इण्डियन एटिकरी (जिल्द १५, पृष्ठ ११२१३. १४० - ४१ ), कापूस इन्स्क्रिप्शनम् इण्डिकेरम् ( जिल्द ३, पृष्ठ २७६-७० ).