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नेपालके राजा अंशुवर्माके लेखमें [श्रीहर्ष] संवत् ३४ प्रथम पौष शुक्ला २ लिखा है (१). कैम्ब्रिजके प्रोफेसर एडम्स और विएनाके डाक्टर श्रामने श्रीहर्ष संवत् ० % ई० स०६०६ (वि० सं० ६६३) मानकर (२) गणित किया, तो ब्रह्मसिद्धान्तके अनुसार ई० स० ६४० अर्थात् विक्रम संवत् ६९७ में पौष मास अधिक आता है (३). इससे विक्रम संवत् और श्रीहर्ष संवत्का अन्तर (६९७-३४ = ) ६६३, और इस संवत्का पहिला वर्ष विक्रम संवत् ६६४ (ई० स० ६०७-८) के मुताबिक होता है. इस संवत्का प्रचार बहुधा पश्चिमोत्तर देशमें था, और ठाकुरी वंशके राजाओंके समय में नेपालमें भी हुआ था.
अलबेरुनीने विक्रम संवत् १०८८ के मुताबिक श्रीहर्ष संवत् १४८८ होना लिखा है ( देखो पृष्ठ ३५), वह श्रीहर्ष संवत् इस संवत्से भिन्न है. उसका पता किसी लेख, दानपत्र, या पुस्तकसे आज तक नहीं लगा, केवल अलबेरुनीने ही उसका उल्लेख किया है.
गांगेय संवत्-दक्षिणसे मिले हुए गंगावंशकी पूर्वी शाखाके राजाओंके कितनेएक दानपत्र फ्लीट साहिबने इंडियन एण्टिक्केरीमें (४) छपवाये हैं, जिनमें “गांगेय संवत्" लिखा है.. यह संवत् गंगावंशके किसी राजाने चलाया होगा. इस संवत् वाले दानपत्रोंमें संवत्, मास, और दिन दिये हैं, वार किसी नहीं दिया, जिससे इस संवत्के प्रारम्भका ठीक ठीक निश्चय नहीं होसक्ता. महाराज इन्द्रवर्माके [गांगेय] संवत् १२८ पाले दानपत्रके हाल में फ्लीट साहिषने लिखा है, कि “गोदावरी जिलेसे मिले हुए राजा पृथ्विमूलके दानपत्र में (५)लिखा हुआ, युद्ध में दूसरे राजाओंके शामिल रहकर इन्द्रभहारकको खारिज करनेवाला
(१) सेसिल बण्डारस जर्नी इन नेपाल एण्ड नार्धनं इण्डिया ( पृष्ठ ७४-६).
(२) जेनरल कनिंगहामने अलबेस्नीके अनुसार श्रीहर्ष सबत् ० = ईसवी सन् ६०६ निश्चय किया है ( बुक आफ इण्डियन ईराज, पृष्ठ ६४). (३) इण्डियन एण्टिक्करौ (जिल्द १५, पृष्ट ३३८).
सूर्य सिद्धान्त के अनुसार वि. स. ११७ (पक सं०५६२) में भाद्रपद मास अधिक आता है. जेनरल कनिंगहामने भी अपने पुस्तक “बुक आफ इण्डियन ईराज" में वि. स. ६९७ में भाद्रपद अधिक लिखा है,
(४) इण्डियन एण्टिक्केरौ ( जिल्द १३, पृष्ठ ११८-२४, २७३-७६. जिल्द १४, पृष्ठ १०-१२, जिल्द १६, पृष्ठ १३१-३४. जिल्द १८, पृष्ठ १४३-१४५). - (५) बोम्बे बेच रायल एशियाटिक सोसाइटीका जर्नल (जिल्द १६, पृष्ठ ११४-२०).
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