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माघ शुक्ला १ से मानाजावे, तो ल० से० संवत् ० = शक संवत् १०२७-२८ ( विक्रम संवत् १९६२-६३ ) आता है, जिससे संवत् १ शक संवत् १०२८-२९, विक्रम संवत् १९६३-६४ के मुताबिक़ होता है.
२- द्विजपत्रिकाके ता० १५ मार्च सन् १८९३ के अंक में लिखा है, कि "बल्लालसेन के पीछे उनके बेटे लक्ष्मणसेनने शक संवत् १०२८ में बंगाल के सिंहासन पर बैठ अपना नया शक चलाया. वह बहुत दिन तक चलता रहा, और अब सिर्फ मिथिला में कहीं कहीं लिखा जाता है". इस लेख के अनुसार वर्तमान लक्ष्मणसेन संवत् १ शक संवत् १०२८-२९ के मुताबिक होता है.
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. ई० स० १८७८ में डॉक्टर राजेन्द्रलाल मित्रने लिखा है, कि तिरहुतके पंडित इसका प्रारम्भ माघ शुक्ला १ से मानते हैं, अतएव इसका प्रारम्भ ई० स० ११०६ के जनवरी ( वि० सं० १९६२, शक सं० १०२७ ) से होना चाहिये ( १ ) " मुनशी शिवनन्दन सहायने " बंगालका इतिहास " नामक पुस्तक के पृष्ठ २० में लिखा है, कि "लक्ष्मण बंगाल में नामी राजा हुआ. इसके नामका संवत् अबतक तिरहुत में प्रचलित है. माघ शुक्ल पक्ष से इसकी गणना होती है. जनवरी सन् १९०६ ई० (वि० सं० १९६२ माघ ) से यह संवत् पहिले पहिल प्रारम्भ हुआ".
इससे इस संवत्का पहिला वर्तमान वर्ष शक संवत् १०२७-२८, विक्रम संवत् १९६२-६३ के मुताबिक होता है.
४- मिथिला के पंचांगों में शक, विक्रम, और लक्ष्मणसेन संवत् तीनों लिखे जाते हैं, परन्तु उनके अनुसार शक संवत् और लक्ष्मणसेन संवत्का अन्तर एकसा नहीं आता, किन्तु लक्ष्मणसेन संवत् १ शक संवत् १०२६-२७, १०२७-२८, १०२९-३०, और १०३०-३१ के मुताबिक आता है ( २ ). ऊपर लिखे हुए प्रमाणोंसे इस संवत्का प्रारम्भ शक संवत् १०२६ से १०३१ के बीच किसी संवत् में होना चाहिये.
५- अबुल फ़ज़लने अकबरनामे में तारीख इलाही प्रचलित करने के फर्मान में लिखा है, कि " बंगदेशमें लछमनसेन के राज्यके प्रारम्भसे संवत्
हिजरी सन् ८०१ में, जो श्रावण मास आया, वह उत्तरी वि० सं० १४५६ का, और दक्षिणी वि० स ं० १४५५ का था, इससे पायाजाता है, कि वि० सं० की १५ वौं शताब्दी में बङ्गाल में विक्रम संवत् दक्षिणी गणना के अनुसार चलता रहा होगा.
(१) एशियाटिक सोसाइटी बङ्गालका जन ले ( जिल्द ४०, हिस्ता १, पृष्ठ ३८८ ), (२) बुक आफ इण्डियन ईराज ( पृष्ठ ०६-७९ ).
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