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में शुरू होता है, और इसका ९५१ वां वर्ष . ई० स० १८३१ में समाप्त होता है ( १ ). इससे ई० स० और नेवार संवत्का अन्तर (१८३१ - ९५१ = ) ८८० आता है.
डॉक्टर कीलहार्नने नेपालके लेख और पुस्तकों में इस संवत् के साथ दिये हुए मास, पक्ष, तिथि, वार, नक्षत्र आदिको गणित से जांचकर . ई० स०८७९ ता० २० अक्टोबर अर्थात् विक्रम सं ९३६ कार्तिक शुक्ला १ को इस संवत् का पहिला दिन अर्थात् प्रारम्भ होना निश्चय किया है ( २ ) इस संवत् के महिने अमान्त हैं ( ३ ).
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चालुक्यविक्रम संवत् - दक्षिणके पश्चिमी ( १ ) चालुक्य राजा विक्रमादित्य छठे ( त्रिभुवनमल्ल ) ने शक संवत्की एवज़ अपने नामसे विक्रम संवत् चलाया, जो " चालुक्यविक्रमकाल " या चालुक्य विक्रमवर्ष ', नामसे प्रसिद्ध था. इसका प्रारम्भ विक्रमादित्य छठेके राज्याभिषेकसंवत्से माना जाता है. शक संवत् ९९७ में सोमेश्वर दूसरे का देहान्त होनेपर उसका छोटा भाई विक्रमादित्य छठा राजा हुआ था. येवूरके एक लेख में “ चालुक्यविक्रम वर्ष दूसरा पिंगल संवत्सर श्रावण शुक्ला १५ रविवार चन्द्रग्रहण " लिखा है ( ४ ). बार्हस्पत्य मानका पिंगल संवत्सर दक्षिणकी गणना के अनुसार ( ५ ) शक संवत् ९९९ में था.
१ ) इण्डियन एण्टिक्क रौ ( जिल्द १०, पृष्ठ २४६ ),
( २ ) नेपालको वंशावली में नेवार संवत् राजा जयदेवमल्लने चलाया लिखा है, परन्तु इस का प्रारम्भ दक्षिणी विक्रम संवत्को नांई कर्तिक शुक्ला १ से, और इसके महीने भी दक्षिण के अनुसार अमान्त होनेके कारण ऐसा अनुमान होता है, कि यह संवत् दक्षिण से आनेवाले नान्यदेवने अपने विजयको यादगार में चलाया होगा.
(३) दक्षिणके चालुक्य राजा कौर्ति वर्माके तीन पुत्र थे- पुलिकेभी, विष्णुवर्धन, और जयसिंह, कौर्ति वर्मा के देहान्त समय ये तीनों कम उम्र होने के कारण इनका पितृव्य मंगलौश राजा हुआ, मंगलीश अपने बड़े भाईके पुत्र, जो राज्य के पूरे हकदार थे मौजूद होनेपर भी अपने बाद अपने पुत्रको राज्य देनेका यत्न करने लगा, जिससे विरोध खड़ा होकर शक स ं० ५३२ में मंगलीश मारा गया, बाद चालुक्य राज्य के दो विभाग हुए पुलिकेशौ पश्चिमी विभागका और विष्णुवर्द्धन ( कुब्जविष्णुवर्धन ) पूर्वी विभागका राजा हुआ, उस समय से दक्षिणके चालुक्योंको पश्चिमी और पूर्वी दो शाखा हुई.
(४) इण्डियन एण्टिक रौ ( जिल्द ८, पृष्ठ २० - २१ जिल्द २२, पृष्ठ १०८ ),
(५) मध्यम मानसे वृहस्पतिके एक राशिपर रहने के समयको बार्हस्पत्य संवत्सर कहते हैं (बृहस्पतेर्मध्यमरा भिभोगात्स'वत्सर' सांहितिका वदन्ति - सिद्धान्त शिरोमणि ११३० ), बर्हस्पत्य स वत्सर ३६१ दिन, २ घड़ी, पौर ५ पलका होता है, और सौरवर्ष ३६५ दिन, १५ घड़ी
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