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(२१) व्यतीत होनेपर (अर्थात् जब शक संवत्का ५५७ वां वर्ष प्रचलित था), यह मंदिर बनाया गया है. इस लेखसे ज्ञात होता है, कि भारतका युद्ध शक संवत्से (३७३५-५५६ % ) ३१७९ वर्ष पहिले हुआ था. कलियुगका प्रारंभ भी शक संवत्से ठीक इतने ही वर्ष पहिले माना जाता है, जैसा कि उपर लिखा है. इससे स्पष्ट है, कि कलियुग संवत् और भारतयुद्ध (१) संवत् एक ही है. भारतके युद्ध में जय पाने से राजा युधिष्ठिरको राज्य मिला था, अतएव भारतयुद्धसंवत् युधिष्ठिरसंवत्का ही नाम है.
कलियुगके प्रारम्भके विषयमें पुराण और ज्योतिषमें विवाद है विष्णुपुराण ( २ ) और भागवत ( ३ ) में लिखा है, कि श्रीकृष्णने स्वर्गप्रयाण किया तभीसे (अर्थात् भारतका युद्ध हुए पीछे ) कलियुगका प्रारम्भ हुआ, और परीक्षितके समय (कलियुगके प्रारंभ) में सप्तर्षि मघा नक्षत्रपर थे (४).
ज्योतिषके आचार्य युधिष्ठिरके राज्य समय सप्तर्षियोंका मघा नक्षत्र पर होना तो मानते हैं, परन्तु कलियुगका प्रारंभ भारतके युद्धसे बहुत वर्ष पहिले हुआ मानते हैं. वराहमिहर वाराही संहितामें वृद्धगर्गके मतानुसार लिखते हैं, कि राजा युधिष्ठिरके राज्य समयमें सप्तर्षि मघा नक्षत्रपर थे,
और उक्त राजाके संवत्के २५२६ वर्ष व्यतीत होने पर (५) शक संवत् चला. इससे तो महाभारतका युद्ध कलियुगके (३१७२-२५२६ % )६५३ वर्ष व्यतीत होनेपर मानना पड़ता है, परन्तु वाराही संहिताके टीकाकार भद्दोत्पलने वृद्धगर्गके पुस्तकसे, जो श्लोक उद्धृत किया है, उससे ऐसा पाया जाता है, कि वृद्धगर्ग द्वापर और कलियुगकी संधिमें सप्तषियों को मघा नक्षत्रपर मानते (६) थे, अर्थात् भारतका युद्ध बापरके अन्त में हुआ मानते थे, न कि कलि युगके ६५३ वर्ष वीतनेपर. (१) महाभारत का कौरव पाण्डवोंका संग्राम, (२) यदेव भगवहिष्णोरंभो यातो दिवहिज । वसदेवकुलोडू तस्तदैव कलिरागत (विष्णुपुरागा, अभ 8, अध्याय २४, श्लोक ५५).
(३) विष्णुभंगवतो भानु : कृष्णाख्योऽसौ दिवंगत :। तदाविशत्कलिलोक पापयरमतेजन' (श्रीमद्भागवत, स्कन्ध १२, अध्याय २. श्लोक २८)
(8) ते त्वदीये हिजाः ( सप्तर्षयः) काले अधुना चाश्रिता मघाः ( श्रीमद्भागवत, स्कन्ध १२, अध्याय २, लोक २८). ते ( सप्तर्षय : ) तु पारिक्षिते काले मघाखासन् दिजोत्तम (विष्णु पुराण, अश ४, अध्याय २४, श्लोक ५४),
(५) आसन्मघास मुनयः भासति पृथ्वौं युधिष्ठिरे नृपतौ । षड हिकपञ्चहियुतः भककालस्तस्य राज्यस्य ( वाराही महिमा, सप्तर्षिचार, श्लोक ३).
(६) तथाच वृद्धगर्गः: । कलिहापरसधौ तु स्थितास्ते पितृदेवत (मघाः) । मुनयो धर्मनिरताः प्रजानां पालने रताः (भट्टोत्पलकत वाराही महिताको टीका, सप्तर्षिचार, श्लोक ३).
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