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(२२) पराशरने (१) कलियुगके ६६६ - आर्यभट्ट ( १ ) ने ६६२२, और राजतरंगिणीके कर्ता कल्हण पण्डित (२) ने ६५३ वर्ष व्यतीत होनेके पश्चात् भारतका युद्ध होना माना है.
___ इस तरह भारतयुद्धसंवत् अर्थात् युधिष्ठिरसंवत्के विषयमें भिन्न भिन्न मत हैं, परन्तु उपरोक्त जैन मन्दिरके लेखके अनुसार कलियुग संवत् और भारतयुद्ध संवत् एक ही सिद्ध होता है.
आर्यभटके समयतक ज्योतिषके ग्रन्थों में कलियुग संवत् लिखा जाता था, परन्तु वराहमिहरने उसके स्थानपर शक संवत्का प्रचार किया. प्राचीन लेख और दानपत्रों में कलियुग संवत् बहुत कम मिलता है.
घद्धनिर्वाण संवत्- शाक्य मुनिक निर्वाण (मोक्ष ) से बौद्ध लोगोंने, जो संवत् माना है, उसको “घुद्धनिवाण संवत्" कहते हैं. गयाके सूर्यमन्दिरमें सपादलक्षके (३) राजा अशोकचल्लके समयका एक लेख है, जिसमें बुद्धके निर्वाणका संवत् १८१३ कार्तिक वदि १ बुधवार लिखा है (४), परन्तु उसके साथ कोई दूसरा संवत्' न देने, और बौद्धोंमें निर्वाणके समयमें मत भेद होने के कारण इस संवत्का ठीक ठीक निश्चय नहीं होसक्ता.
सीलोन (५) अर्थात् सिंहलद्वीप, ब्रह्मा और स्याममें (६) बुद्धका निर्वाण सन् ई० से ५४४ (विक्रम संवत्से ४८७) वर्ष पहिले मानाजाता है, और आसामके राज गुरु भी ऐसाही मानते हैं (७). पेगू
(१) इडियन ईराज ( पृष्ठ ८), (२) भारतं हापरान्त ऽभूहात येति विमोहिताः । केचिदेतां मृषा तेषां कालसङ्ख्यां प्रचक्रिरे ॥ तेषु षट स सार्द्धषु त्राधिकेषु च भूतले । कलेग तेषु वर्षाणामभवन्कुरुपाण्डवाः ( राजतरङ्गिणो, तरङ्ग १, श्लोक ४८.५१).
(३) “ सपादलक्ष” या “ सवालक " सिवालिक पहाड़ियों का नाम है. प्राचीन काल में कमाऊ के राजा अपनेको “ सपादलक्ष नृपति” कहते थे ( इंडियन एण्टिकरी, जिल्द ८, पृष्ठ ५८, नोट ६).
1) भगवप्ति परिनिर्वते सवत् १८१९ कार्तिक वदि १ बुधे ( ईडियन एण्टिक्केरी, जिल्द 1०, पृष्ठ ३४३). (५) कार्पस दून स्त्रियशनम डिकेरम (जिल्द १ की भूमिका, पृष्ठ ३), (६) प्रिन्सेस एण्टि क्विटीज़ (जिल्द २, युसफुल टेबल्स, पृष्ठ १६५). (७)
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