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मौर्य संवत्- उदयगिरिपरकी हाथीगुफामें राजा खारवेलका एक प्राकृत भाषाका लेख मिला है, जिसका संवत् पंडित भगवानलाल इन्द्रजीने "मुरियकाल (मौर्यकाल )१६५ वर्तमान, और १६४ गत" पढ़ा है (१)जेनरल कनिंगहामने कार्पस इनस्क्रिप्शनम् इंडिकेरम्की जिल्दी में इस लेखकी जो, छाप दी है ( प्लेट १७), उसमें “ मुरियकाल " स्पष्ट नहीं पदा जाता, किन्तु (--यकाल )"य"के पहिलेके अक्षरोंकी जगह खाली छोड़ दी है. मिस्टर प्रिन्सेप (२) और डॉक्टर राजेन्द्रलाल मित्र (३)ने इस लेखके भाषान्तर किये हैं, परन्तु उनमें भी ये अक्षर छोड़ दिये हैं. केवल पंडित भगवानलाल इन्द्रजीने ही ये अक्षर निकाले हैं.
___ मौर्य संवत्के प्रारंभका कुछ भी पता नहीं लग सका, क्योंकि उपरोक्त लेखके सिवा किसी दूसरे लेखमें यह संवत् नहीं पाया गया.
राजा अशोककी गिरनार, शहवाजगिरि और खालसीकी १३ वीं धर्माज्ञासे विदित होता है, कि उसने लाखों मनुष्योंका नाश कर कलिंगदेश विजय किया था. यह लेख कलिंगदेशमें होनेसे ऐसा अनुमान होता है, कि कदाचित् अशोकने कलिंगदेश जय किया उसकी यादगारमें उसी समयसे यह संवत् वहां चला हो. यह देश अशोकके राज्याभिषेकसे८वें वर्षमें विजय हुआ था, इसलिये यदि अशोकका राज्याभिषेक सन् ई० से अनुमान २६९वर्ष पहिले माना जावे (४), तो उपरोक्त अनुमानके अनुसार इस संवत्का प्रारंभ सन् ई० से पूर्व (२६९-८= ) २६१ वर्षके लगभग होना संभव है.
विक्रम संवत् ( मालव संवत् )-इसके प्रारंभके विषयमें ऐसा प्रसिद्ध है, कि मालवाके राजा विक्रम (विक्रमादित्य) ने शक (सीथियन या तुरुष्क)
अशोकचलका लेख दशरथके लेखसे कुछ पहिलेका होना सम्भव है, और उसके अनुसार निर्वाणका संवत् गवालोंके मतानुसार ( सन् ई. से ६३८ वर्ष पूर्व ) आता है, और कार्तिक वदि १ बुधवार, विक्रम संवत् १२२७ व १२१३ में अर्थात् ता. २८ अक्टोबर सन् १९७० व ता.२० अक्टोवर सन् ११७६ ई. को पाता है, पेग और ब्रह्मा वाले। असर उस जगह (गया) पर आये, और वहां मन्दिर भी बनवाये हैं, तो पूर्ण सम्भव है, कि इस लखका संवत् ईसवी सन् ११७६ के मुताबिक होगा, अतएव उस लेख में निर्वाण संवत् सन् ई० से ६३८ वर्ष पहिले का है ( इण्डियन एण्टिक्करो, जिवद १०, पृष्ठ ३४७). (१) बौम्बे गेज टियर (जिन्द १६, पृष्ठ ६१३). (२) कापस इन्स्क्रिपशनम् इण्डिकेरम् (जिन्द १, पृष्ठ ८८-१०१, १३२, १३४). (३) एशियाटिक सोसाइटी बङ्गालके प्रोमोडिंग्ज (शुलाई सन् १८७७ ई०, पृष्ठ १६६-६७). (४) इस्क्रिप्शन्स आफ. पियदसि ( प्रसिद्ध विद्वान् ई० सेना के फ्रेंच पुस्तकका अंग्रेजी अनुवाद, जी. ए. मोयस न साहिबका किया हुआ, जिल्द २, पृष्ठ ८६).
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