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(३३)
के राजाओं के लेखों में शक संवत् न होने, किन्तु अपना अपना राज्याभिषेक काल दिये जानेसे यह पाया जाता है, कि शक संवत् इस वंशके किसी राजाका चलाया हुआ नहीं है, और शालिवाहनका नाम इस संवत् के साथ पीछे से जुड़ गया है.
शक राजा कनिष्क के [शक] संवत् ५ से २८ (१) तक के, उसके क्रमानुयायी हुविष्क के ३३ से ६५ तकके, और वासुदेवके ८० से ९८ तक के लेख मिलने से कितनेएक विद्वानोंका यह अनुमान है, कि शक राजा कनिष्कने यह संवत् चलाया होगा.
पंडित भगवानलाल इन्द्रजीने क्षत्रपोंके समस्त लेख और सिक्कोंपर [शक] संवत् होनेसे यह अन्तिम अनुमान किया है, कि " नहपान " ने शातकर्णीको विजयकर उसकी यादगार में अपने स्वामी शक राजा के नामसे यह संवत् चलाया (१) हो ऐसा संभव है.
वास्तव में यह संवत् शक जातिके किसी विदेशी राजाका चलाया हुआ है, चाहे वह कनिष्क हो या कोई अन्य इस संवत्का प्रचार भारतवर्ष में सब संवतों से अधिक रहा है, और इसका प्रारंभ सर्वत्र चैत शुक्ला १ से माना जाता है. यह संवत् कलियुग के ( ४९९५- १८१६ = ) ३१७९ (विक्रम संवत् के १३५ ) वर्ष व्यतीत होनेपर प्रारंभ हुआ है, इसलिये इसका पहिला वर्ष कलियुग सं० ३१८० ( वि० सं० १३६ ) के मुताबिक हैं. जैसे उत्तरी हिन्दुस्तान में विक्रम संवत् लिखा जाता है, वैसे ही यह संवत् दक्षिण में लिखा जाता है, और जन्मपत, पंचांग आदिमें विक्रम संवत् के साथ भारतवर्ष में सर्वत्र लिखा जाता है.
इसका
कलचुरि या चेदि संवत् - यह संवत् किस राजाने चलाया, कुछ भी पता नहीं लग सक्ता, किन्तु " कलचुरि संवत् " लिखा हुआ मिलने, और कलचुरि (हैहय ) वंश के राजाओंके लेखों में बहुधा यही संवत् होनेसे ऐसा अनुमान होता है, कि कलचुरि वंशके किसी राजाने यह संवत् चलाया होगा. इस संवत् के साथ दूसरा कोई संवत् लिखा हुआ आजतक किसी लेख या दानपत्रमें नहीं मिला, कि जिससे इसके प्रारंभका सुगमता से निश्चय होसके.
चेदि देश के कलचुरि राजा गयकर्णदेवके लेख में चेदि संवत् ९०२
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(१) रायल एशियाटिक सोसाइटीका ई० स० १८८० का जर्नल ( पष्ठ ६४२ )
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