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( २८ )
साथ "विक्रमांक" या "विक्रमादित्य” (१), और कितने एक पर एक ओर चन्द्रगुप्तका नाम और दूसरी ओर “ श्रीविक्रमः "," अजित विक्रम : ", " सिंह विक्रमः ", " प्रवीर : ", " [वि] क्रमाजित: ", या " विक्रमादित्यः " ( २ ) लिखे रहने से स्पष्ट है, कि उसका दूसरा नाम विक्रम या विक्रमादित्य था. इससे कितने एक विद्वानों का यह अनुमान है, कि उसीके नामसे शायद मालव संवत्को विक्रम संवत् कहने लग गये होंगे ( ३ ). वास्तव में यह अनुमान ठीक भी पाया जाता है.
" ज्योतिर्विदा भरण" के कर्ताने उक्त पुस्तक के २२ वें अध्यायमें अपनेको उज्जैन के राजा विक्रमादित्यका मित्र और रघुवंश आदि तीन काव्यों का बनाने वाला कवि कालिदास प्रकट कर ( ४ ) गत कलियुग संवत् ३०६८ ( वि० संवत् २४ ) के वैशाख में उस पुस्तकका प्रारंभ, और कार्तिक में समाप्त होना लिखा ( ५ ) है, और राजा विक्रमादित्यका वृत्तांत इस तरह दिया है:
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उसकी सभा में शंकु, वररुचि, मणि, अंशुदत्त, जिष्णु, त्रिलोचनहरि, घटखर्पर, और अमरसिंह आदि कवि, तथा सत्य, वराहमिहर, श्रुतसेन, बादरायण, मणित्थ, और कुमारसिंह आदि ज्योतिषी थे ( ६ ). धन्वन्तरि, क्षपणक, अमरसिंह, शंकु, वेतालभट्ट, घटखर्पर, कालिदास, वराहमिहर और वररुचि ये नव उसकी सभा में रत्न ( ७ ) गिने जाते थे. (१) रायल एमियाटिक सोसाइटीका जर्नल ( जिल्द २१, पृष्ठ १२० - २१ ). जिल्द २१, पृष्ठ १६ - ९१ ).
( २ ) (३) फर्ग्युसन साहिबका यह अनुमान था, कि विक्रमका सवत् प्रारम्भसे नहीं चला, किन्तु करके युद्ध में विक्रमादित्य अर्थात् उज्जैन के राजा हर्ष विक्रमने ई० स० ५४४ में शक लोगोंको विजय किया, तबसे विमक्र संवत् चला है, अर्थात् वि० सं० १ को ६०१ लिखा है.
( ४ ) पंक्कादिपण्डितवराः कवयस्त्वनेका ज्योतिर्विदः समभवं श्ववराहपूर्वा । श्रविक्रमार्क'नृपसंसदि मान्यबुद्धि: स्तेरप्यहं नृपसखा किल कालिदास : ( २२ । १८) काव्यश्रयं समतिकृद्रषुपूर्व ततो च्छ्रतिकर्मवाद: । ज्योतिर्विदाभरणकाल विधानशास्त्र श्रीकालिदास - कवितो हि ततो बभूव ( २२।२० ),
(५) वर्षे सिंधुरदर्शनांवर गुणे ( २०६८ )र्याते : कलौ सम्मिते माझे माधवसंज्ञि क्रियोपक्रमः। नाना कालविधान शास्त्रगदितज्ञानं विलोक्यादरादू ग्रन्थसमाप्तिरत्र विचिता ज्योतिर्विदां प्रीतये (२२/२१ ).
( ६ ) शंकुः सुवाग्वररुचिर्मणिरंशदत्तो जिष्णुस्त्रिलोचनहरी घटखर्पराख्यः । अन्येऽपि सन्ति कवयो ऽमरसिंहपूर्वा यस्यैव विक्रमन्नृपस्य सभासदोऽमी (२२८) सत्यो वराहमिहरः श्रुतसेन - मामा श्रीबादरायणमणित्यकुमार सिरहा । श्रीविक्रमार्क नृपस सदि सति चैते श्रीकाल तंत्रकवयः परे महाया : (२२/८ ).
( ७ ) धन्वन्तरिः क्षपणको मर सिंह शंकू वेतालभट्टघटखर्पर कालिदासाः । ख्यातो वराहमिहरो नृपतेः सभायां रत्नानि वै वररुचिर्मव विक्रमस्य ( १२।१० ),
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