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इन दोनों लेखोंमें, जो संवत् है, वह मालवजाति (१) की स्थिति होनेपर चला हुआ प्रतीत होता है, न कि विक्रमके समयसे.
इलाहाबाद के स्तंभपरके राजा समुद्रगुप्तके लेखसे पाया जाता है, कि उक्त राजाने मालव, यौद्धेय आदि बहुतसी जातियोंको आधीन की थी (२). जयपुर राज्य में नागर ( कर्कोटक नगर ) से मिले हुए कितनेएक सिक्कोंपर "मालवानां जय:" पढ़ा जाता है, और उनके अक्षरोंकी आकृतिसे जेनरल कनिंगहामने उनका काल ई० सन् से पूर्व २५० वर्षसे ई० सन् २५० के बीचका अनुमान किया है (३).
मंदसोरके दोनों लेख और इन सिक्कोंसे यह अनुमान होता है, कि मालव जातिके लोगोंने अवन्ती देश विजय कर उसकी यादगारमें अपने नामका "मालव संवत्", और उपरोक्त सिक्के चलाये होंगे. इन्हीं लोगोंके बसनेपर अवन्ती देश "मालव" ( मालवा ) कहलाया है, क्योंकि देशों के नाम बहुधा उनमें बसने वाली जातियों के नामसे प्रसिद्ध होते हैं, जैसे कि गुर्जर (गूजर ) जातिसे “गुर्जरदेश" (गुजरात) आदि,
कुमारगुप्त पहिलेके लेख [गुप्त] संवत् ९६, ९८, ११३, और १२९ के मिले हैं (४), और उसके दो सिक्कोंपर [गुप्त] संवत् १२९ और १३० के अंकोंका होना जेनरल कनिंगहाम प्रकट करते हैं (५). गुप्त संवत् १ उत्तरी (चैत्रादि) विक्रम संवत् ३७७ के मुताबिक होनेसे उक्त राजाका राज्यकाल विक्रमी संवत् ४७२ से ५०६ तकका आता है, और मंदसोरके सूर्यमन्दिरके लेखसे इस राजाका मालव संवत् ४९३ में विद्यमान होना पाया जाता है. इससे स्पष्ट है, कि मालव संवत् और विक्रम संवत् एकही है, जैसे कि गुप्त और वल्लभी संवत्. आठवीं शताब्दी तक के लेखों में संवत्के साथ विक्रमका नाम न होने, और उसके पूर्व मालव
(१) "मालवानां गणस्थित्या" और "मालवगणस्थितिवमात् " में "गण" शब्द का अर्थ " जाति" है, जैसे कि यौवयोंके सिक्कोंपरके लेख ( आर्कि यालाजिकल सर्वे आफ इण्डियारिपोर्ट, जिल्द १४, पृष्ठ १४१) “मय यौद्वेषगणस्य” में है.
(२) कार्पस इन्स्क्रिप्शनम् इण्डिकेरम् (जिल्ट ३, पृष्ठ ८). (१) आर्कि यालाजिकल सबै आफ इण्डिया-रिपोर्ट (दि.ल्द ६, पृष्ठ १८२),
(४) कार्पस इन्स्क्रिपशनम् इण्डि कैरम (जिल्द ३, पृष्ठ ४०-४७, पट । हो, ५, ६ ए. और एपिग्राफि या दूहिका, जिद २, पृष्ठ २१०, नम्बर ३८).
(५) आकि यालाजिकल सर्वे अाप इण्डिया रिपोर्ट ( जिल्द , पृष्ठ २६, नेट ५, नम्बर ६, ७).
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