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उसके पास ३००००००० पैदल, १०००००००० सवार, २४३०० हाथी, और ४००००० नाव थीं. उसने ९५ शक राजाओंको मार अपना शक अर्थात संवत् चलाया, और रूम देशके शक राजाको पकड़ उज्जैन में लाया, परन्तु फिर उसको छोड़ दिया ( १ ) आदि.
यदि उपरोक्त वृत्तान्त सत्य हो, और वास्तव में यह पुस्तक कलियुगके ३०६८ (वि० सं० के २४) वर्ष व्यतीत होने पर बना हो, तो प्रारंभसे ही यह संवत् विक्रमने चलाया ऐसा मानना ठीक है, परन्तु इस पुस्तक पूर्वापर विरोधसे पाया जाता है, कि विक्रम संवत्के ६४० वर्ष व्यतीत होने के पश्चात् किसी समय यह पुस्तक कालिदास के नामसे किसीने रचा है, क्योंकि उसमें अयनांश निकालने के लिये ऐसा नियम दिया है, कि "शफ संवत्मेंसे ४४५ घटाकर शेषमें ६० का भाग देनेसे अयनांश आते हैं (२)".
विक्रम संवत्के १३५ वर्ष व्यतीत होनेपर शक संवत् चला है, इसलिये यदि इस पुस्तक के बनने का समय गत कलि युग संवत् ३०६८ (वि. सं० २४) सत्य मानाजावे, तो इसमें शक संवत्का नाम नहीं होना चाहिये. शक संवत्में से ४४५ घटाना, और शेषमें ६० का भाग देना लिखनेसे स्पष्ट है, कि शक संवत् ४४५+६० =५०५ (वि० सं ६४०) गुज़रने बाद किसी समयपर यह पुस्तक बना है. इसी प्रकार प्रभधादि संवत्सर निकालने के नियम में भी शक संवत्का ( ३ ) उपयोग किया है.
विक्रमादित्यकी सभाके विद्वानोंके जो नाम इस पुस्तकमें दिये हैं, उनमेंसे जिष्णु और वराहमिहरका समय निश्चय होगया है. जिष्णुके
(१) यस्याष्टादशयोजनानि कटके पादातिकोटित्रयं वाहानामयुतायुतं च नवतेविताकृति. ( २४३००) हस्तिनां। नौकालक्षचतुष्टयं विजयिनी यस्य प्रयाणभवत् सोयं विक्रमभूपतिविजयते नान्यो धरित्रीतले (२२/१२). येनास्मिन्वसधातले भकगणान् सर्वा दिशः संगरे हखा पञ्जनवप्रमान् कलियुगे भाकप्रवृत्ति : कृता० (२२।१३) यो रूमदेशाधिपति के प्रवरं जौला पहोलोनयनौं महाहवे। आनीय संन्नाम्य मुमोच तं बहो स विक्रमार्क : समसद्यविक्रम : ( २२॥१७).
(२) पाक : मराम्भोधियुगानितो (४५) हृतो मानं खत (६०) रयनांयका : स्मृता : (१।१८).
(३) नगै (७) नखे : (२०) सन्निहतो हिधाशक : स खत्रिपक्रो (१४३० ) ऽक्षयमाङ्ग (६२५ ) भाजितः । गता : स तसवणको भ्रषट (६०) हृतो ऽवशेषके स्यु : प्रभवादिवत्सरा: (१।१६).
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