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( २० )
संवत् १५८२, शास्त्र संवत् ३६ वैशाख कृष्णा १३ बुधवार लिखा है. इससे भी शास्त्र संवत् १ ( १७१७ ३६ = १६८१ ) विक्रम संवत् १६८२ और शक संवत् ( १५८२ ३६ = १५४६ ) १५४७ में आता है, जो ठीक उपरकी गणना के अनुसार है. इस लेखमें विक्रम और शक संवत् वर्तमान है या गत यह स्पष्ट नहीं लिखा, परन्तु गणितसे दोनों संवत् गत पाये जाते हैं.
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(ग) पूनाके दक्षिण कालेजके पुस्तकालय में शारदा ( कश्मीरी ) लिपिका " काशिका वृत्ति" पुस्तक है, जिसमें गत विक्रम संवत् १७१७, सप्तर्षि संवत् ३६, पौष कृष्णा ३ रविवार और तिष्य ( पुष्य) नक्षत्र ( १ ) लिखा है. इसमें स्पष्ट लिखदिया है, कि विक्रम संवत् १७१७ गत हैं, इससे भी इस संवत्का पहिला वर्ष ( १७१७ ३६ = १६८१ ) विक्रम संवत्की १७ वीं शताब्दी के ८२ वें वर्ष में आता है ( २ ).
यह संवत् चैत्र शुक्ला १ से आरम्भ होता है, और इसके महीने पूर्णि मान्त ( ३ ) हैं. प्राचीन समयमें यह संवत् कश्मीर से सिन्धतक प्रचलित था, परन्तु अब कश्मीर और उसके आस पासके पहाड़ी इलाकों में कहीं कहीं लिखा जाता है.
कलियुग संवत् - इसका प्रारंभ विक्रम संवत् से. ( ४९९५ - १९५१ = ) ३०४४, और शक संवत् से ( ४९९५ - १८१६ = ) ३१७९ वर्ष पहिले माना जाता है. पंचांगों में इस संवत् के गत और वर्तमान वर्ष दोनों लिखे जाते हैं.
दक्षिण के चालुक्यवंशी राजा पुलिकेशि दूसरेके समयका एक लेख कलाडगी ज़िले (दक्षिण) में एहोळेकी पहाड़ीपरके जैन मंदिर में मिला है, जिसमें लिखा है, कि भारत के युद्ध से ३७३५, और शक संवत् के ५५६ वर्ष ( ४ )
(१) श्रीनृपविक्रमादित्यराज्यस्य गतान्दा : १७१७ श्री सप्तर्षिमते सम्वत् ३६ पौ [ व ]ति ३ रवौ तिष्यनक्षत्रे (इंडियन एंटिक्करी, जिल्द २०, पृष्ठ १५२ ).
( २ ) ( क ), ( ख ), और ( ग ) में सप्तर्षि सम्वत्को वर्ष वर्तमान, और विक्रम तथा शक संवत् गत हैं.
गुजरात से उत्तर वाले
(३) भारतवर्ष में महीनोंका प्रारंभ दो तरह से माना जाता है, अपने महौनोंका प्रारम्भ कृष्णा १ को, और अन्त पूर्णिमाको मानते हैं, इसलिये उनको महीने पूर्णिमांत कहलाते हैं. गुजरात व दक्षिण वाले शुक्ला १ से आरम्भ और अमावास्याको अन्त मानते हैं, जिससे उनके महीने अमांत कहे जाते हैं.
(४) त्रिंशत् त्रिसहस्रेषु भारतादाहवादित : सप्ताब्द भतयुक्त षु प्र ( ग ) ते ष्वब्देषु पञ्चसु ( ३०३५ ) पञ्चाशत्सु कलौ काले षट्सु पञ्चशतासु च ( ५५६ ) समास समतीतास शकानामपि भूभुजां (इंडियन ए'टिक्क री जिल्द ८, पृष्ठ २४२ ).
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