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गहाम इस संवत्का सन् .ई० से ६७७७ वर्ष पहिले ( १ ) से होना मानते हैं.
(क) राजतरङ्गिणीमें कल्हण पंडितने लिखा है (२), कि इस समय लौकिक कालका २४ वां वर्ष प्रचलित है, और शक संवत्का १०७० वां गत वर्ष (३) है. इस हिसाबसे लौकिक संवत् ० शक संवत् (१०७०-२४ % ) १०४६ गतके मुताषिक होता है, और इस संवत्का प्रत्येक पहिला वर्तमान वर्ष शक संवत्की हरएक शताब्दीके ४७ वें गत वर्षके मुताषिक है ( ४७, १४७, २४७, ३४७ आदि ). विक्रम संवत्से १३५ वर्ष पीछे शक संवत् प्रारम्भ हुआ है, इसलिये इस संवत्का प्रत्येक पहिला वर्तमान वर्ष विक्रम संवत्की प्रत्येक शताब्दीके ( ४७+ १३५ = १८२)८२ वें गत वर्षके मुताबिक होता है (८२, १८२, २८२, ३८२ आदि).
(ख) चम्बासे मिले हुए एक लेखमें (४) विक्रम संवत् १७१७, शक
(१) इंडियन ईराज ( पृष्ठ ४).
(२) लौकिकान्दे चतुर्वि भककालस्य साम्प्रतम् । सप्तत्याभ्यधिकं यात सहस्र परिवत्सरा : ( राजतरङ्गिणी, तरङ्ग १, श्लोक ५२).
(३) ता. ७ एप्रिल सन् १८८४ ई० के दिन उत्तरौ हिन्दुस्तान में जो विक्रम संवत्का नया वर्ष प्रारभ हुआ है, उसको हम लोग विक्रम सम्वत् १८५१ वर्तमान, और ता. ६ एप्रिल के दिन को वर्ष पूरा हुमा उसको विक्रम सम्वत् १९५० गत (गुजरा हुआ) मानते हैं, जब " सम्वत् १९५१ चैत्र शुक्ला १” लिखते हैं, तब हम यह समझते हैं, कि सम्वत् १८५० गत होगया याने गुजर गया, और १८५१ का यह पहिला दिन है, परन्तु ज्योतिषको गणनावे अनुसार इसका अर्थ ऐसा होता है, कि सम्वत् १८५१ तो पूरा होचुका, और प्रगले सं. १८५२ का यह पहिला दिन है, अर्थात जो अंक हैं उतने वर्ष पूरे होगये वास्तव में ऐसा ही होना ठीक से क्यों कि व्यवहार में भी जब किसी कार्य को इए एक वर्ष पूरा होकर दूसरे वर्षका १ दिन जाता है, तब हम उसके लिये १ वर्ष, १ दिन लिखते हैं, न कि २ वर्ष, १ दिन. इससे स्पष्ट है, कि अंक गुजरे हुए वर्ष ही बतलाते हैं, न कि वत मान वर्ष.
प्रचलित भूलका कारण ऐसा पाया जाता है कि प्राचीन समय में बहुधा वर्ष के साथ गतेषु, अतीतेषु आदि “ गुजरे हए" अर्थ वाले शब्द लिख जाते थे, परन्तु ऐसे शब्दोंका लिखना छूट जाने से उनको लोग वर्तमान मानने लग गये होंगे. प्राचीन लेख और दानपत्र
आदि में जो सम्वत् के प्रत होते हैं, वे बहुधा गत वर्ष हैं, परन्तु जहां कहीं वर्तमान वर्ष लिख हैं, तो एक वर्ष अधिक रखा है. मद्रास इहात के दक्षिण विभागमें आज भी ज्योतिष के अनुसार वर्तमान वर्ष लिख जाते हैं, इसलिये वहांका सम्वत् हमारे सम्वत्से एक वर्ष मागे रहता है, वतमान उत्तरी विक्रम सम्बत् १९५१ में हम शक सम्वत् १८१६ लिखते हैं, जो ज्योतिषके हिसाब से १८१६ गत है, अतएव वहां वाले १८१७ वर्म मान लिखते हैं,
(४) श्रीमन्न पति विक्रमादित्यसंवत्सरे १७१० श्रीशालिवाहन शके १५८२ श्रीपास्व संवत्मरे ३६ वैशाख वदि वयोदश्यां बुधवासरे मेषिक सक्रांती (इंडियन एंटिक्केरी, जिल्द २०, पृष्ठ १५२),
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