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अनन्तवर्माके ३ लेख पाये, जिनकी लिाप गुप्त (१) लिपिसे मिलती हुई होने के कारण उनका पढ़ना कठिन प्रतीत हुआ. परन्तु चार्ल्स विल्किन्सने ई० सन् १७८५ से ८९ तक श्रमकर तीनों लेख पढ़लिये. इससे गुप्त लिपिकी अनुमान आधी वर्णमालाका ज्ञान होगया. - इसी प्रकार दक्षिणमें डॉक्टर बी० जी० बैकिंग्टनने मामल्लपुरके कितनेएक संस्कृत और तामिळ भाषाके प्राचीन लेख पढ़कर सन् १८२८.ई. में उनकी वर्णमाला (२) तय्यार की.
वाल्टर इलियट साहिबने प्राचीन कनडी अक्षरोंको पहिचाना, और सन् १८३३ ई० में उनकी वर्णमाला प्रकट की. .
सन् १८३४ ई० में कप्तान ट्रॉयर इस उद्योगमें लगे, और इलाहाबाद ( प्रयाग) के स्थम्भपरके समुद्रगुप्तके लेखका कुछ हिस्सह पढ़ा (३). इसी वर्ष में डॉक्टर मिलने इस लेखको पूरा पढ़ सन् १८३७ ई० में भिटारीके स्तम्भपरका स्कन्दगुप्तका लेख (४) भी पढ़लिया.
सन् १८३५ ई० में डब्ल्यू० एच० वॉथनने वल्लभीके कितनेएक दानपत्र पढ़े (५). __सन् १८३७-३८ .ई० में जेम्स प्रिन्सेपने दिल्ली, कहाऊं, और एरणके स्थम्भों, तथा सांची और अमरावतीके स्तूपों, और गिरनार पर्वतपरके गुप्ताक्षरोंके लेख पढ़े (६). कप्तान ट्रॉयर, डॉक्टर मिल, और प्रिन्सेप साहिवकै श्रमसे चार्ल्स विल्किन्सकी गुप्ताक्षरोंकी अधूरी वर्णमाला पूर्ण होगई, और गुप्त राजाओंके समयतकके लेख, दानपत्र, और सिके पढ़ने के लिये सुगमता हुई.
पाली लिपि- यह लिपि गुप्त लिपिसे भी बहुत पुरानी होनेके कारण इसका पढ़ना बड़ा दुस्तर था. सन् १७९५ ई० में सर चार्ल्स मेलेटने इलोराकी गुफाओंके कितनेएक छोटे छोटे लेखोंकी छाप तय्यारकर सर विलियम जोन्सके पास भेजी. उन्होंने ये लेख विल्फ़र्ड साहिबके पास भेजे, परन्तु जब उक्त साहिबसे वे नहीं पढ़े गये, तो एक पण्डितने कितनीएक
(१) गुप्त वंशी राजाओंके समयको प्राचीन देवनागरी लिपिको "गुप्त लिपि " कहते हैं ( इस लिपिके वास्ते देखो लिपिपत्र तीसरा, चौथा, और पांचवां)
(२) ट्रेन्ज क्शन्स पाफ रायल एशियाटिक सोसाइटी (जिल्द २, पृष्ठ २६४-१८प्लेट १३, १५, ११, १८). (३) एशियाटिक सोसाइटी बंगालका जनल (जिल्द ३, पृष्ठ ११८).
(जिल्द६, पृष्ठ १).
(जिल्द ४, पृष्ठ ४७६). (६) " " (जिल्द ६,७).
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