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(४) लेखोंसे आराम स्थान ( सराय ) और दूरीका पता लग सक्ता (१) है.
सन् ई० से ३२७ वर्ष पहिले यूनानके बादशाह सिकन्दरने इस देशपर हमला किया और सिन्धु नदीको पारकर आगे बढ़ आया था. उसके जहाज़ी सेनापति निआर्कसने लिखा है, कि यहांके लोग रुईको कूट कूट कर लिखने के लिये काग़ज़ बनाते हैं.
"ललित विस्तर" ग्रन्थमें बुद्धका लिपिशालामें जाकर विश्वामित्र अध्यापकसे चन्दनकी पाटीपर स्याहीसे लिखना सीखनेका (२) वर्णन है. इस ग्रन्थका चीनी भाषामें अनुवाद ई० सन् ७६ में हुआ था, जिससे इस ग्रन्थके प्राचीन होने, और इसके अनुसार बुद्धके समयमें लिपिशालाओंके होने में सन्देह नहीं है. युद्धके निर्वाणका समय भारतवर्षके प्रसिद्ध पुरा तत्त्ववेत्ता जेतरल कनिंगहामने ई० सन् से ४७८ वर्ष पहिलेका निश्चय किया है.
बुद्धसे पहिले पाणिनिने व्याकरणका ग्रन्थ अष्टाध्यायी लिखा था, जिसमें "लिपि" और "लिधि" (३) शब्द दिये हैं, जिनका अर्थ "लिखना" (४) होता है, और “लिपिकर" (लिखनेवाला) शब्द बनानेके लिये नियम लिखा है (३). ऐसेही “ यवनानी" (५) शब्द भी दिया है. जिसका अर्थ कात्यायन और पतञ्जलिने “ यवनोंकी लिपि" किया है, इससे स्पष्ट है, कि पाणिनिके समयमें यवनोंकी लिपि आर्य लिपिसे भिन्न थी. उसी अष्टाध्यायीमें "ग्रन्थ" (६) (पुस्तक वा किताब) शब्द, लिङ्गानुशासनमें “पुस्तक" (७) शब्द, और धातुपाठमें (८) "लिख" (.९) (अक्षर लिखना) धातु भी दिया है. इनके अतिरिक्त " रेफ" (अर्धरकारका चिन्द, जो अक्षरके ऊपर लगाया जाता है ) और स्वरित (१०)
(१) मैगस्थनीस इडिका ( पृ० १२५-२६ ). (२) ललित विस्तर अध्याय १० वां (अंग्रेजी अनुवाद पृ० १८१-८५). (३) दिवा विभानिमाप्रभाभास्करान्तानन्तादिबहुनान्दोफिलिपिलिविवलि० ( ३।२।२१).
(४) लिपिंकरो ऽतरचणो ऽक्षरचुञ्च च लेखके ॥ लिखिताक्षरविन्यासे लिपिलि विरुभेस्त्रियौ ॥ ( अमरकोश, काण्ड २, क्षत्र वग १५१६).
(५) इन्द्रवरुणभव रुद्रमडहिमारण्ययवयवन० (४।१४८).
(६) समुदाभ्यो यमोऽग्रन्थ (११३।७३ ). अधिकृत्य कृते ग्रन्थ (४।३।८०), कृते अन्य (४।३।११६).
(0) कण्टकानीकसरकमोदकचषकमस्तकपुस्तक. (पुल्लिङ्ग सूत्र २८). (८) लिख अक्षरविन्यासे (तुदादिगण ). (e) लिखानुशासन और धातुपाठ भी पाणिनिके बनाये माने जाते हैं. (१०) स्वरितेनाधिकार : (१।३।११).
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