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(८)
डॉक्टर औटफ्रिड मूलरका अनुमान है, कि सिकन्दरके समय में यूनानी लोग हिन्दुस्तान में आये, उनसे भारतवासियोंने अक्षर सीखे हैं:
डॉक्टर स्टिवन्सन ( १ ) का अनुमान है, कि हिन्दुस्तानके अक्षर या तो फ़िनीशियन या मिस्र देशके अक्षरोंसे बने हैं.
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डॉक्टर पॉल गोल्डस्मिथ (२) लिखते हैं, कि फ़िनीशियन अक्षरोंसे सीलोन ( सिंहलद्वीप या लंका ) के अक्षर बने, और उनसे हिन्दुस्तान के; लेकिन डॉक्टर ई० म्युलर ( ३ ) का कथन है, कि सीलोन में लिखनेका प्रचार होनेके पहिले से हिन्दुस्तान में लिखनेका प्रचार था.
बर्नेल ( ४ ) साहिबने यह निश्चय किया है, कि फ़िनीशियन से निकले हुए “ अरामिजन " अक्षरोंसे पाली अक्षर बने हैं; लेकिन आइज़क टेलर (५) लिखते हैं, कि अरामिअन और पाली अक्षर परस्पर नहीं मिलते.
एम० लेनोमेंट कहते हैं, (६) कि फ़िनीशियन अक्षरोंसे अरबके हिम्यारिटिक् अक्षर और उनसे पाली अक्षर बने हैं.
इस प्रकार कईएक यूरोपिअन विद्वान् पाली अक्षरोंकी उत्पत्ति के विषयमें अनेक कल्पना करते हैं, परन्तु किसीने भी फ़िनीशियन, अरामिअन, हिम्यारिटिक् आदि लिपियोंसे ऐसे पांच दश अक्षर भी नहीं बतलाये, जो उन्हीं उच्चारणवाले पाली अक्षरों से मिलते हों.
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प्रगट है, कि किसी दो भाषाओंकी वर्णमालाओंको मिलाकर देखा जावे, तो दो चार या अधिक अक्षरोंकी आकृति परस्पर मिलही जाती है, चाहे उच्चारणमें अन्तर हो. जैसे पालीको उर्दू से मिलावें, तो “ र ” | ( अलिफ़ ) से, “ज” १ ( ऐन ) और "ल J (लाभ) से मिलते जुलते मालूम होते हैं. ऐसे ही अंग्रेज़ी अक्षरोंको पालीसे मिलावें, तो A (ए) 66 ग से, ( डी ) " ध" से, E (ई) "ज" से, | ( आई ) " र " से, J (जे) ल" से, L (एल ) " उ से, T (टी- उलटा 1 ) “न” से, U (यू ) " प "
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से, O (ओ ) से, X ( एक्स )
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( १ ) बोम्ब े ब्रेच रायल एशियाटिक सोसाइटीका जर्नल ( जिल्ह ३, पृ० ७५ ).
( २ ) अकेडमी ( सन् १८७७ ता० ८ जन्वरी ),
(३) रिपोर्ट आन एन्श्यट इन्स्क्रिप्शन्स आफ सीलोन ( पृ० २४ ).
४ ) साउथ इण्डियन पॅलिओग्राफी ( पृ० १ ),
(५) आल्फाबेट (जिल्द २, पृ० ३१३ ).
( ६ ) ऐसे आन फिनीशियन अल्फाबेट ( जिल्द १, पृ० १५० ).
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