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(३)
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जैसे साधन न थे, ऐसी दशा में भारतवर्ष जैसे अति विस्तीर्ण देश में केवल १४४ वर्षके भीतर लिखने पढ़नेका प्रचार भली भांति सर्व देशी दोजाना, और देवनागरीकी वर्णमालाका भूमण्डलकी समस्त लिपियोंकी वर्णमालाओं से अधिक सरलता और सम्पूर्णताको पहुंचना सम्भव नहीं है.
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सांची एक स्तूप ( १ ) में से पत्थर के दो गोल डिब्बे ( २ ) मिले हैं, जिनमें “ सारिपुत्र " और " महामोगलान" की हड्डियां निकली हैं. एक डिब्बेके ढक्कनपर " सारिपुतस " ( सारिपुत्रस्य ) खुदा है, और भीतर सारिपुत्र के नामका पहिला अक्षर सा" स्याहीसे लिखा हुआ है. दूसरेके ढक्कनपर " महामोगलानस " ( महामौद्गलायनस्य ) खुदा है, और भीतर " म अक्षर स्याहीका लिखा हुआ है. बौडोंके पुस्तकोंसे पाया जाता है, कि सारिपुत्र और मोगलान दोनों बुद्ध ( शाक्यमुनि) के मुख्य शिष्य थे. सारिपुत्रका देहान्त बुद्धकी मौजूदगी में होगया था, और मोगलानका बुद्धके निर्वाणके बाद यह स्तूप सन् ई० से पूर्व २५० वर्ष से भी पहिलेका बना हुआ है. उस समयके लिखे हुए स्याही के अक्षर मिलनेसे निश्चित है, कि इस देशमें लिखने के साधन पहिले से मौजूद थे.
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अशोक के दादा चन्द्रगुप्तके दर्षारमें सिरिआके राजा सेल्युकसका वकील मैगस्थनीस ई० सन् से ३०६ वर्ष पहिले आया था; वह लिख गया है, कि इस देश (भारतवर्ष ) में नये वर्ष के दिन पंचाङ्ग सुनाया जाता है (३), जन्मपत बनानेके लिये बालकोंका जन्म समय लिखा जाता है ( ४ ), और दस दस स्टोडिआ ( ५ ) के अन्तरपर कोसोंके पाषाण लगे हैं, जिनपर के
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( १ ) " स्तूप ” बौद्ध धर्मावलम्बियों का एक पवित्र स्थान मानाजाता है, जिसकी आकृति एल्ॡ ेषष्टको समान अथवा गुम्मट से मिलती जुलती होती है, प्राचीन समय में बौद्ध लोग बुद्धको अथवा अपने किसी बड़े प्रसिद्ध धर्मोपदेशकको हड्डी वगैरा पर स्मारक चिन्हको निमित्त ऐसे स्तूप बनवाते थे, और इसको एक बड़ा पुण्यका काम मानते थे, जब किसी राजा या धनाढ्यकी तरफ से बड़ा स्तूप बनाया जाता तो उसके खात मुहर्त पर बड़ा उत्सव होता था, और देश देशान्तर के बौद्ध धर्मावलम्बी, और धर्मोपदेशक लोग उस उत्सवपर एकत्र होते थे, जैसे कि हमारे यहांके मन्दिरोंमें मूर्ति प्रतिष्ठाके समय एकत्र होते हैं. भारतवर्ष में समय समयपर बने हुए अनेक स्तूप पाये गये हैं.
(२) मेलमा टोप्स ( पृ० २८५ - ३०८),
(३) मैगस्थनीस दू'डिका ( पृ० ८१ ).
( ४ )
( पृ० १९६ ).
(५) एक से डिअम् ३०६ फीट और ८ इच का होता है.
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