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प्राचीन लिपिमाला.
भारतवर्षमें लिखनेका प्रचार प्राचीन समयसे चला आता है.
यह बात तो निर्विवाद है, कि प्राचीन समयमें भारतवर्ष निवासी ऋषि मुनि आदि आर्य लोगों ने विद्या विषयमें जितनी उन्नति की थी उतनी किसी अन्य देश वासियोंने उस समय नहीं की, परन्तु कितनेएक आधुनिक गुरोपिअन् विद्वान् और हमारे यहां के राजा शिवप्रसादका (१) कथन है, कि आर्य लोग प्राचीन समयमें लिखना नहीं जानते थे; पठन पाठन केवल कथन श्रवण द्वारा होता था. प्रोफेसर मैक्सम्यूलर तो यहां तक कहते हैं, कि पाणिनिके व्याकरण अष्टाध्यायी में एक भी शब्द ऐसा नहीं है (२), कि जिससे उक्त पुस्तककी रचनाके समयतक लिखने का प्रचार पाया जावे;
और प्रसिद्ध प्राचीन शोधक बर्नेल साहिषने निश्चय किया है, कि सन् ई० से ४०० वर्ष पहिले ही आर्य लोगोंने विदेशियों से लिखना सीखा था (३).
भारतवर्ष के प्राचीन लेख, और उनसे बहुत पहिले पने हुए ग्रन्थोंको देखनेसे ऐसा प्रतीत होता है, कि इन विद्वानों के अनुमान किये हुए समय से बहुत पहिले इस देश में लिखनेका प्रचार था. __ काग़ज़ (४), भोजप्रत्र (५), या ताड़पत्र (६) पर लिखे हुए पुस्तक
(१) इतिहास तिमिरनामक ( खण्ड ३ रा). (२) हिस्टरी आफ एनयट संस्कृत लिटरेचर ( पृष्ठ ५०७). (३) साउथ इंडिअन पेलोपोग्राफी (पृष्ठ १). ( 8 ) कागज पर लिखे हुए सबसे पुराने भारतवर्षकी नागरी लिपिके ४ संस्कृत पुस्तक मध्य एशियामें यार कन्द नगरसे ६० मील दक्षिण “ कुगिअर” स्थान में जमीनसे निकले हुए वेबर साहिबको मिले हैं, जिनका समय प्रसिद्ध विहान डाक्टर हौन ली साहिबने सन ई० को पांचवौं शताब्दी अनुमान किया है (बंगालको एशियाटिक सोसाइटीका. जर्नल जिल्द ६२, पृष्ठ ८).
(५) भोजपत्रपर लिखा हुपा सबसे पुराना संस्कृत पुस्तक पूर्वी तुर्किस्तान में “ कुचार" स्थान के पास जमीन से निकला हुआ बावर साहिबको मिला है, जिसका समय भी सन ई० की पांचवौं शताब्दी अनुमान किया गया है. यह पुस्तक गवर्मेण्ट की तरफसे डाक्टर होन ली छपवा रहे हैं. इसका पहिला हिस्सह सन १८८३ ई० में छपचुका है.
(६) विक्रम संवत् ११८८ का ताड़पत्रपर लिखा हुआ “ आवश्यक सूत्र” नामका जैन ग्रन्थ प्रसिद्ध विद्वान् डाक्टर बुलरको मिला है ( सन १८७२-३ ई० की रिपोर्ट ).
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