Book Title: Prachin Lipimala
Author(s): Gaurishankar Harishchandra Ojha
Publisher: Gaurishankar Harishchandra Ojha

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४) लेख आदिके अंग्रेजी पुस्तकों में ही छपनेके कारण उनसे कुछ लाभ नहीं उठासक्त, और प्राचीन लिपियोंका बोध न होनेके कारण न उनको पढ़सक्ते हैं. प्राचीन लिपियोंका बोध होनेके लिये आज तक कोई ऐसा पुस्तक स्वदेशी भाषामें नहीं बना, कि जिसको पढकर सर्व साधारण लोग भी अपने देशके प्राचीन लेख आदिका यथार्थ ज्ञान प्राप्त करनेके अतिरिक्त यह जानसकें, कि देशकी प्रचलित देवनागरी, शारदा, गुरुमुखी, बंगला, गुजराती, महाराष्ट्री, कनडी आदि लिपियें पहिले किस रूपमें थीं, और उनमें कैसा कैसा परिवर्तन होते होते वर्तमान रूपको पहुंची हैं. यह अभाव दूर करने के लिये 'प्राचीन लिपिमाला' नामका यह छोटासा पुस्तक लिखकर अपने देश बंधुओंकी सेवामें अर्पण करता हूं, और आशा रखता हूं, कि सज्जन पुरुष इसको पढकर मेरा श्रम सफल करेंगे. इस पुस्तकका क्रम ऐसा रक्खा है, कि लिपिपलोंके पहिले इसमें कितनेएक लेख, जैसे कि भारतवर्ष में लिखनेका प्रचार प्राचीन समयसे होना, पाली और गांधार लिपियोंकी उत्पत्ति, और भूली हुई प्राचीन लिपियोंका फिरसे पढेजानेका संक्षेप हाल, लिखकर प्राचीन लेख और दानपत्रोंमें पाये जाने वाले सप्तर्षि संवत्, कलियुग संवत् (युधिष्ठिर संवत् ), बुद्धनिर्वाण संवत्, मौर्य संवत्, विक्रम संवत् (१), शक संवत्, चेदि संवत्, गुप्त या वल्लभी संवत्, श्रीहर्ष संवत्, गांगेय संवत् , नेवार संवत्, चालुक्यविक्रम संवत् , लक्ष्मणसेन संवत् , सिंह संवत् और कोलम संवत्के प्रारम्भ आदिका वृत्तान्त संक्षेपसे लिखा है, जिसका जानना प्राचीन लेखोंके अभ्यासियोंको आवश्यक है. तदनन्तर प्राचीन अंकोंका सविस्तर हाल लिख हरएक लिपिपत्रका संक्षेपसे वर्णन किया है. अन्तमें ५२ लिपिपत्र (प्लेट) दिये हैं, जिनमेंसे १ से ३७ तकमें भारतवर्ष के भिन्न भिन्न विभागोंसे मिले हुए समय समयके लेख और दानपत्रोंसे वर्णमाला तय्यार की हैं. इन लिपिपत्रोंके बनाने में क्रम ऐसा रक्खा गया है, कि प्रथम स्वर, फिर व्यंजन, तत्पश्चात् स्वर मिलित व्यंजन और अन्तमें संयुक्ताक्षर सम्पूर्ण लेख या दानपत्रसे छांटकर दिये हैं, और उनपर वर्तमान देवनागरी अक्षर रक्खे हैं. जहां एकही अक्षर - . (१) इस पुस्तकमें जहां जहां 'विक्रम संवत् ' लिखा है, उसको चैत्रादि विक्रम संवत् समझना चाहिये. For Private And Personal Use Only

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