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अन्यकर्ता-विषयक संस्मरण उद्देश्य हिन्दुस्तान के सुप्रसिद्ध चौहान सम्राट पिरथी राज अथवा पृथ्वीराज (जिसके महलों के खंडहर में यह प्राप्त हुआ था) की डोड जाति (११६८ ई०) पर विजय को चिरस्मरणीय बनाना या; यह विजय उसके प्रमुख सामन्त किल्हण (Kilhan) और हमीर के पराक्रम से प्राप्त हुई थी, जिनके नाम उस समय के युद्धों में बहुत प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके थे। यह शोध-पत्र पश्चिम भारत के इतिहास की विद्वत्तापूर्ण व्याख्या और एतद्देशीय लोगों के चरित्रोदाहरण के विषय में, जो तत्कालीन योरप-निवासी विद्वानों के लिए नई बात थी, एक प्रेरणादायक चक्र के रूप में सामने आया । वह शिला, जिस पर लेख उत्कीर्ण था, कर्नल टॉड ने १८१८ ई० में लॉर्ड हेस्टिग्स को भेज दी थी; परन्तु. इसके भाग्य का आज तक पता नहीं है ।
उसी वर्ष जून मास में, उसने सोसाइटी को तीन ताम्रपत्रोत्कीर्ण दान-पत्र समर्पित किए जो १८१२ ई० में उसे उज्जैन में मिले थे; इसके अतिरिक्त एक संगमरमर का शिलालेख भी भेंट किया, जो उसने १८२२ ई० में अपने मध्य भारत के अन्तिम दौरे के अवसर पर मधुकरघर (Madhucargihar) में खोज निकाला था। ये सब उसी परमार वंश से सम्बद्ध हैं, जिसका समय उसके द्वार निश्चित किया गया है और जो भारत के इतिहास एवं साहित्य का महत्वपूर्ण काल माना गया है । ये लेख भी, जिनका मिस्टर कोलबुक ने पुन: अनुवाद किया था, पूर्व लेख के समान ही विद्वत्ता की आभा से चमत्कृत हैं । ___ उसके द्वारा भारत में प्राप्त ग्रीक, पार्थिन और हिन्दू चन्द्रक जिनका विव. रण उसने जून, १८२५ ई० में सोसाइटी के सामने पढ़ा था, उसकी अत्यन्त महत्वपूर्ण संगृहीत सामग्री माने जाते हैं । इस शोध-पत्र के साथ कुछ चन्द्रको की उत्कीर्ण प्रतिकृतियाँ भी थीं (जो उसने अपने खर्चे से बनवाई थीं); इनमें, से दो चन्द्रक तो विशेषतः मुद्राशास्त्र में बॅक्ट्रिया के ग्रीक राजानों की शृंखला की टूट को पूरा करने वाले थे-नामत: अपोलोडोटस और मीनान्डर, जिनमें से पूर्व नाम का उल्लेख तो बेयर (Bayer) ने भी अपनी बॅक्ट्रियन राजवंशावली में नहीं किया है; उसका पता तो केवल एरिअन (Artian) की सूचना के बाद ही जानकारो में
आया है । इन मूल्यवान् सिक्कों की उपलब्धि के विषय में विवरण देते हुए कर्नल टॉड ने कहा है कि भारत में रहते हुए पिछले बारह वर्षों में, इतिहास-संशोधन का उपाङ्ग मानते हुए, सिक्कों का संग्रह भी उसकी एक प्रवृत्ति रही है; वर्षाऋतु में मथुरा एवं अन्य प्राचीन नगरों में कुछ लोगों को वह उन सब चीजों को इकट्ठा करने में लगा देता था, जो पानी के प्रताप से ढह कर भूमिसात् हुई दीवारों और फूट कर सामने आती हुई नीवों के कारण प्रकटता को प्राप्त हुआ
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