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प्रकरण - ५; अघोरी मर के प्रासाद और सामान्य झोंपड़ियाँ, गहन गम्भीर वन और टूटी-फूटी चट्टानें। ठंडी तेज हवा चल रही थी परन्तु ऐसे दृश्यों को देख कर जो विचार-मग्नता दर्शक पर छा जाती है उससे मन हटाए नहीं हटता था; ऐसा प्रतीत होता था मानो हम इस विशाल दृश्यावलि के स्रष्टा के बहुत समीप आ गए थे और मस्तिष्क इस सब को समझने में अपनी तुच्छता का अनुभव कर के दबा-सा जा रहा था। मेरे परिजनों पर भी यही मोहक प्रभाव छा गया था और वे स्थिति की नवीनता के विषय में एक भी शब्द बोले बिना दृश्य को तल्लीन हो कर देखते रहे । अन्त में, मुझे ध्यान पाया कि अब हमारे लौटने का समय हो गया था; सामने ही दिखते हुए कुछ गांवों का निरीक्षण करने के अतिरिक्त सुबह के चार बजे से दोपहर के एक बजे तक की पूरी मेहनत के बाद, कुछ ऐसे भी चिह्न दिखाई दिए थे जिनसे सुरक्षा करना, करौंदों की झाड़ियों की अपेक्षा उनके भीतर रहने वालों से, मनुष्यों के लिए अधिक पावश्यक था। फिर, हमारे ठहरने और आराम करने का स्थान अब भी यहां से दो मील की दूरी पर था।
यद्यपि उतराई आसान थी फिर भी हम अपराह्न में ३ बजे से पहले अचलेश्वर नहीं पहुंच सके; खुली हवा में बॅरामीटर २७°२५. और थर्मामीटर ७८० बतला रहा था। चार बजे पारा ८२° पर चढ़ गया जिससे दिन के इस भाग में तापमान का असाधारण बदल प्रतीत हुआ। बॅरामीटर में भी उसी समय उसी गति से ५' का परिवर्तन मालूम हुआ; यह अब २७°२०' पर था। साढ़े पांच बजे यह २७°१७ पर और थर्मामीटर ७८° पर आ गया। हमारा मार्ग उन्हीं सुगन्धित कुञ्जों में हो कर था जहां प्रकृति खुले हाथों अपनी शोभा लुटा रही थी; फिर भी मनुष्य के अन्ध-विश्वासों ने बीच में पा कर सहज निर्दोष मानव जाति के पूर्वजों के निवासयोग्य स्थलों को दानवों के निवासस्थान में बदल दिया था, जहां स्वयं मानव पशुता के धरातल पर उतर आया था। ____ मैंने पाखण्डपूर्ण पण्डागीरी के दास बने हुए भारतवर्ष के असंख्य निवासियों में प्रचलित बहुत से विपरीत रीति-रिवाजों को स्वयं देखा था और उनके बारे में बहुत कुछ पढ़ा भी था, परन्तु आज का दिन मेरे लिए यह खोज निकालने को बच रहा था कि मनुष्य अपने पाप, पण्डे-पुजारियों की मध्यस्थता के बिना भी, राजी-खुशी किस सीमा तक नीचे गिर सकता है और यह पतन मानवीय प्राकृ. तिक गणों से इतना नीचा है कि उसे रिवाज का रूप तो कभी दिया ही नहीं जा सकता । मेरा तात्पर्य अघोरी से है जिसे हिन्दुओं के साम्प्रदायिक वर्गीकरण की अन्तहीन नामावली में स्थान मिला हुआ है । में इस पतित मानव को उसकी जाति का शृगाल कह सकता हूँ, परन्तु अर्द्धरात्रि में कब्रों और अन्य गन्दे स्थानों
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