________________
प्रकरण - ५; राव से पुन: भेंट
[६९ द्वारा नहीं होता, जिन्हें उसके महान कार्यों का ज्ञान भी नहीं है, अपितु उसकी महानता एवं गौरव-गाथाओं से प्रेरित हो कर वे लोग पूजन करते हैं, जिनका उस से कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है । इन प्रतिमाओं पर छाया हुआ साधारण फूस का छप्पर हम को और भी उत्तम पाठ पढ़ाता है, जो शायद हम उस क्षण में न पढ़ पाते यदि वे किसी संगमरमर के मन्दिर में प्रतिष्ठित होतीं।।
यहाँ की प्रत्येक वस्तु जैन है और वषभदेव' का मन्दिर दर्शनीय है क्योंकि इसमें चौबीस तीर्थंकरों में से पहले बारह तीर्थंकरों की मूर्तियां विराजमान हैं, जिन्हें 'देवत्व' (निर्वाण) प्राप्त हुआ था। इनका वज़न कई हजार मन बताया जाता है और ये सर्वधातुविनिर्मित हैं।' भीतर के किले के पास ही, नीचे की ओर बाँए हाथ चल कर पार्श्वनाथ का मन्दिर है जहाँ उनको प्रतिमा प्रतिष्ठित है । इस मन्दिर का निर्माण अथवा जीर्णोद्धार अणहिलवाड़ा के सुप्रसिद्ध राजा कुमारपाल ने करवाया था, जो इस धर्म का संरक्षक एवं जैनों के प्रभावशाली प्राचार्य हेमचन्द्र का शिष्य था । बाह्य रूप से मूर्ति-कला में विचित्रता है परन्तु इसकी बनावट में सौन्दर्य-भावना का ध्यान नहीं रखा गया है। दिन के एक बजे अचलगढ़ की तलहटी में बॅरॉमीटर २७° ४' और थर्मामीटर ७८° और तीन बजे बॅरॉमीटर २६० ६५' तथा थर्मामीटर ७८० बतला रहे थे; दिन के ग्यारह बजे एक विश्वासपात्र एवं समझदार नौकर को भेज कर गुरुशिखर पर पारे की स्थिति दिखाई गई तो नतीजा इस प्रकार था- बॅरामीटर २६०८६' और थर्मामीटर ६८०; पूर्व परीक्षणों की अपेक्षा परिणाम की इस भिन्नता के विषय में हम आगे लिखेंगे।
दिन में कुछ ठंडक होने पर जब में शिकार के लिए इधर-उधर घूम रहा था तो राजपूती सैनिक वाद्यों की ध्वनि मेरे कानों में पड़ी और थोड़ी ही देर बाद देवड़ा राजा का लवाजमा [परिकर] पूरी रियासती शान-शौकत के साथ दष्टिगोचर हुआ--झण्डे लहरा रहे थे, ढोल और बाजे बज रहे थे--वे सब आमों की कुञ्जों से घिरे हुए अपने इष्टदेव अचलेश के मन्दिर की ओर आगे बढ़ रहे थे । इस दृश्य का उत्साहपूर्ण वातावरण वहाँ की स्वाभाविक स्तब्धता से सर्वथा भिन्न था, परमारों का भग्न दुर्ग उस दिन की याद कर रहा था---
• वृषभदेव अथवा, अपभ्रंश में, बृषभदेव का यही अर्थ है जो शंवों के नन्दीश्वर का, क्योंकि
दोनों की प्रतिमा बल ही की है । यह जानने के लिए कि कोई जैन-मन्दिर किस तीर्थकरविशेष का है यह देख लेना पर्याप्त होगा कि उसकी चौकी पर कौनसा चिह्न बना हमा
है, जैसे बैल, सर्प, शेर इत्यादि, क्योंकि प्रत्येक तीर्थकर का विशेष चिह्न होता है। २ इन मन्दिरों में कुल चौदह मूर्तियां हैं, जिनका वज़न १४४४ मन कहा जाता है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org