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पश्चिमी भारत की यात्रा
सीमा में कोई जीव नहीं मारा जाता था।' इसके आगे उसकी राज्यव्यवस्था का वर्णन है, परन्तु यदि ऊपर दिए हुए सभी प्रदेशों पर उसकी सर्वोच्च सत्ता स्वीकार भी करली जावे तो उसकी सेना की संख्या पर सहज ही विश्वास नहीं किया जा सकता; ग्यारह सौ हाथी, पचास हजार सांग्रामिक- रथ, आठ लाख पैदल भोर ग्यारह लाख घोड़े । ये सब मिला कर उस संख्या से भी बहुत बढ़ जाते हैं जो सेना क्षरक्षस' (Xerxes ) ग्रीस पर चढ़ा कर लाया था ।
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कङ्कणे च महाराष्ट्र ' कोरे १६ जालंधरे १४ पुनः ।
सपादलक्षे १° (?) मेवाडे " दीदाभी' 'राख्ययोरपि ॥ २ ( कु.पा.च )
ऊपर टॉड साहब ने अट्ठारह की जगह बीस देश गिनाए हैं। उक्त पद्य में जिन अट्ठारह प्रदेशों के नाम दिए गए हैं वे प्राय: टॉड साहब की सूची में आ गए हैं, केवल भम्भेरी नहीं आया है । राष्ट्र देश सम्भवतः महाराष्ट्र है और भंसबर शायद सांभर, शाकम्भरी अथवा सपादलक्ष है । सेवलक और संकुलदेश के नाम उक्त पद्य में नहीं आए हैं ।
१७- झेलम और चिनाब के संगम से पश्चिम में थोड़ी दूर पर उच्च नामक स्थान अब भी है जो ऊंछ नाम से प्रसिद्ध है। यही उच्च देश का प्रधान नगर था ।
* भम्भेरी या बम्बुरा सिन्ध के कराची जिले का एक प्राचीन नगर था । इसके आसपास ही कोट है जहाँ प्रसिद्ध देवालय थे, जिनको सन् ७११ ई. के प्राक्रमरण में मुसलमानों ने तोड़ डाले थे, इसीलिए अब भी लोग इस स्थान को देवल, देबल अथवा दाबल नाम से पुकारते हैं । १४- जालंधर - इसका क्षेत्रफल १२,१८१ वर्गमील गिना जाता है; इसके ईशानकोण में होशियारपुर जिला है । वायव्य कोण में कपूरथला और व्यास नदी है- दक्षिण में सतलज मा गई है, और सतलज औौर व्यास के बीच का त्रिकोणाकार भाग जालंधर का दोग्राबा कहलाता है, जो बहुत उपजाऊ है ।
प्राचीनकाल में यह प्रदेश चन्द्रवंशी राजाश्रों के अधिकार में था । कांगड़ा के आसपास छोटे-छोटे संस्थानों में अब भी इस वंश के लोग बसते हैं। ये लोग महाभारतकाल के सुशर्म चन्द्र के वंशज हैं । सुशर्म ने महाभारत युद्ध के बाद मुलतान का राज्य छोड़ कर जालंधर के दोआबे में काटोच अथवा तंगतं नामक राज्यों की स्थापना की ।
चीनी यात्रा साँग के लेखानुसार सातवीं शताब्दी में होशियारपुर, कांगड़ा पर्वत का प्रदेश और प्राधुनिक चम्बा, मंडी तथा सरहिन्द के इलाके भी जालंधर में सम्मिलित थे। 1 पद्मपुराण में लिखा है कि जालन्धर नामक दैश्य ने इसकी स्थापना की थी। चीनी यात्री
लिखा है कि जालन्धर का घेरा दो मील का है और इसके दोनों तरफ दो तालाब हैं । गज़नी के इब्राहिम मुसलमान का इस पर अधिकार हो गया था। मुगलकाल में यह नगर सतलज और व्यास नदियों के बीच के दो श्राबे की राजधानी था। इसके अलग-अलग विभाग बने हुए हैं और प्रत्येक विभाग के पृथक्-पृथक् परकोटे हैं।
रासमाला, गुजराती अनुवाद, पृ. २३७-३८ । का पुत्र था। उसने एक विशाल सेना लेकर N.S.E; p. 1311
' क्षरक्षस फारस के बादशाह डेरियस प्रथम ई० पू० ४५० में ग्रीस पर चढ़ाई की थी।
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